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Sunday, January 3, 2016

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Thursday, November 12, 2015

गोवर्धन पूजा व् अन्नकूट पूजा / Annakut | Govardhan Puja | Vishwakarma Divas

गोवर्धन पूजा व् अन्नकूट पूजा / 

Annakut | Govardhan Puja | Vishwakarma Divas





अन्न कूट की पूजा का तो हमारे यहाँ दिवाली से भी ज्यादा क्रेज होता है ,
पूजा कुछ भी हो , लेकिन आज के दिन आस पड़ोस में सब लोगों में  अधिक से अधिक सब्जियां खरीदने की होड़ रहती है ,
अड़ोसी पड़ोसी सब्जियां एक्सचेंज भी करते हैं , अधिक से अधिक वेरायटी दार सब्जी बनाने की होड़ रहती है ,
सब्जियों के साथ फल , मेवे भी डाले जातें हैं ,लेकिन हरी सब्जी की भरमार अधिक रहती है जिस से सब्जी जायकेदार व् सेहत के लिए लाभदायक होती हैं 

अन्नकूट एक प्रकार से सामूहिक भोज का दिन है. इसमें पूरे परिवार, वंश व समाज के लोग एक जगह बनाई गई रसोई को भगवान को अर्पन करने के बाद प्रसाद स्वरुप ग्रहण करते है

*******************
गोवर्धन पर्व प्रत्येक वर्ष दिपावली के एक दिन बाद मनाया जाता है. वर्ष 2012 में यह् पर्व 14 नवम्बर, कार्तिक मास शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि को श्रद्धा व विश्वास के साथ मनाया जायेगा. गोवर्धन पूजा के दिन ही अन्नकूट पर्व भी मनाया जाता है. दोनों पर्व एक दिन ही मनाये जाते है, और दोनों का अपना- अपना महत्व है. गो वर्धन पूजा विशेष रुप से श्री कृ्ष्ण की जन्म भूमि या भगवान श्री कृ्ष्ण से जुडे हुए स्थलों में विशेष रुप से मनाया जाता है.

इसमें मथुरा, काशी, गोकुल, वृ्न्दावन आदि में मनाया जाता है. इस दिन घर के आँगन में गोवर्धन पर्वत की रचना की जाती है. श्री कृ्ष्ण की जन्म स्थली बृ्ज भूमि में गोवर्धन पर्व को मानवाकार रुप में मनाया जाता है. यहां पर गोवर्धन पर्वत उठाये हुए, भगवान श्री कृ्ष्ण के साथ साथ उसके गाय, बछडे, गोपिया, ग्वाले आदि भी बनाये जाते है. और इन सबको मोर पंखों से सजाया जाता है.

और गोवर्धन देव से प्रार्थना कि जाती है कि पृ्थ्वी को धारण करने वाले हे भगवन आप गोकुल के रक्षक है, भगवान श्री कृ्ष्ण ने आपको अपनी भुजाओं में उठाया था, आप मुझे भी धन-संपदा प्रदान करें. यह दिन गौ दिवस के रुप में भी मनाया जाता है. एक मान्यता के अनुसार इस दिन गायों की सेवा करने से कल्याण होता है. जिन क्षेत्रों में गाय होती है, उन क्षेत्रों में गायों को प्रात: स्नान करा कर, उन्हें कुमकुम, अक्षत, फूल-मालाओं से सजाया जाता है.

गोवर्धन पर्व पर विशेष रुप से गाय-बैलों को सजाने के बाद गोबर का पर्वत बनाकर इसकी पूजा की जाती है. गोबर से बने, श्री कृ्ष्ण पर रुई और करवे की सीके लगाकर पूजा की जाती है. गोबर पर खील, बताशे ओर शक्कर के खिलौने चढाये जाते है.

मथुरा-वृंन्दावन में यह उत्सव बहुत धूमधाम से मनाया जाता है. सायंकाल में भगवान को छप्पन भोग का नैवैद्ध चढाया जाता है.

गोवर्धन पूजा कथा
Story of Govardhan Puja
गोवर्धन पूजा के विषय में एक कथा प्रसिद्ध है. बात उस समय की है, जब भगवान श्री कृ्ष्ण अपनी गोपियों और ग्वालों के साथ गायं चराते थे. गायों को चराते हुए श्री कृ्ष्ण जब गोवर्धन पर्वत पर पहुंचे तो गोपियां 56 प्रकार के भोजन बनाकर बडे उत्साह से नाच-गा रही थी. पूछने पर मालूम हुआ कि यह सब देवराज इन्द्र की पूजा करने के लिये किया जा रहा है. देवराज इन्द्र प्रसन्न होने पर हमारे गांव में वर्षा करेगें. जिससे अन्न पैदा होगा. इस पर भगवान श्री कृ्ष्ण ने समझाया कि इससे अच्छे तो हमारे पर्वत है, जो हमारी गायों को भोजन देते है.

ब्रज के लोगों ने श्री कृ्ष्ण की बात मानी और गोवर्धन पर्वत की पूजा करनी प्रारम्भ कर दी. जब इन्द्र देव ने देखा कि सभी लोग मेरी पूजा करने के स्थान पर गोवर्धन पर्वत की पूजा कर रहे है, तो उन्हें बिल्कुल अच्छा नहीं लगा. इन्द्र गुस्से में आयें, और उन्होने ने मेघों को आज्ञा दीकी वे गोकुल में जाकर खूब बरसे, जिससे वहां का जीवन अस्त-व्यस्त हो जायें.

अपने देव का आदेश पाकर मेघ ब्रजभूमि में मूसलाधार बारिश करने लगें. ऎसी बारिश देख कर सभी भयभीत हो गयें. ओर दौड कर श्री कृ्ष्ण की शरण में पहुंचें, श्री कृ्ष्ण से सभी को गोवर्धन पर्व की शरण में चलने को कहा. जब सब गोवर्धन पर्वत के निकट पहुंचे तो श्री कृ्ष्ण ने गोवर्धन को अपनी कनिष्का अंगूली पर उठा लिया. सभी ब्रजवासी भाग कर गोवर्धन पर्वत की नीचे चले गयें. ब्रजवासियों पर एक बूंद भी जल नहीं गिरा. यह चमत्कार देखकर इन्द्रदेव को अपनी गलती का अहसास हुआ. और वे श्री कृ्ष्ण से क्षमा मांगने लगें. सात दिन बाद श्री कृ्ष्ण ने गोवर्धन पर्वत नीचे रखा और ब्रजबादियों को प्रतिवर्ष गोवर्धन पूजा और अन्नकूट पर्व मनाने को कहा. तभी से यह पर्व इस दिन से मनाया जाता है.

अन्नकूट पर्व
Annakut Festival
अन्नकूट पर्व भी गोवर्धन पर्व से ही संबन्धित है. इस दिन 56 प्रकार की सब्जियों को मिलाकर एक भोजन तैयार किया जाता है, जिसे 56 भोग की संज्ञा दी जाती है. यह पर्व विशेष रुप से प्रकृ्ति को उसकी कृ्पा के लिये धन्यवाद करने का दिन है. इस महोत्सव के विषय में कहा जाता है कि इस पर्व का आयोजन व दर्शन करने मात्र से व्यक्ति को अन्न की कमी नहीं होती है. उसपर अन्नपूर्णा की कृ्पा सदैव बनी रहती है.


अन्नकूट एक प्रकार से सामूहिक भोज का दिन है. इसमें पूरे परिवार, वंश व समाज के लोग एक जगह बनाई गई रसोई को भगवान को अर्पन करने के बाद प्रसाद स्वरुप ग्रहण करते है. काशी के लगभग सभी देवालयों में कार्तिक मास में अन्नकूट करने कि परम्परा है. काशी के विश्वनाथ मंदिर में लड्डूओं से बनाये गये शिवालय की भव्य झांकी के साथ विविध पकवान बनाये जाते है.



********************






गोवर्धन पूजा को अन्नकूट पूजा के नाम से भी जाना जाता है। कार्तिक शुक्ल पक्ष प्रतिपदा के दिन गोर्वधन की पूजा की जाती है। शुक्रवार को गोवर्धन पूजा की जाएगी। यह पूजा भगवान कृष्ण के प्रति भक्ति प्रदर्शित करने का एक जरिया है।
भोपाल। ज्योतिषाचार्य पंडित धर्मेंद्र शास्त्री के अनुसार यह उत्सव कृष्ण की भक्ति व प्रकृत्ति के प्रति उपासना व सम्मान को दर्शाता है। भारत के लोकजीवन में इस त्यौहार का महत्व प्रत्यक्ष दिखाई पड़ता है। यह पर्व जीवन के हर क्षेत्र में प्रेम व समर्पण का भाव दर्शााता है।
गोवर्धन पूजन 
गाय के गोबर से गोवर्धननाथ जी की छवि बनाकर उनका पूजन किया जाता है तथा अन्नकूट का भोग लगाया जाता है। यह परंपरा द्वापर युग से चली आ रही है। श्रीमद्भागवत में इस बारे में कई स्थानों पर उल्लेख प्राप्त होते हैं। उसके अनुसार भगवान कृष्ण ने ब्रज में इंद्र की पूजा के स्थान पर कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा के दिन गोवर्धन पर्वत की पूजा आरंभ करवाई थी।
भगवान श्रीकृष्ण ने इसी दिन इन्द्र का अहंकार धवस्त करके पर्वतराज गोवर्धन जी का पूजन करने का आह्वान किया था। इस विशेष दिन मन्दिरों में अन्नकूट किया जाता है तथा संध्या समय गोबर के गोवर्धन बनाकर पूजा की जाती है। इस दिन अग्नि देव, वरुण, इन्द्र, इत्यादि देवताओं की पूजा का भी विधान है। इस दिन गाय की पूजा की जाती है फूल माला, धूप, चंदन आदि से इनका पूजन किया जाता है।
प्रकृति की उपासना है गोवर्धन पूजा 
ज्योतिषाचार्य पंडित धर्मेंद्र शास्त्री के अनुसार यह पर्व विशेष रूप से प्रकृति को उसकी कृपा के लिए धन्यवाद करने का दिन है। गोवर्धन पूजा की परंपरा प्रारंभ करके कृष्ण ने लोगों को प्रकृत्ति की सुरक्षा व उसके महत्व को समझाया। 
गोवर्धन पूजा का महत्व 
अन्नकूट या गोवर्धन पूजा भगवान कृष्ण के अवतार के बाद द्वापर युग से प्रारम्भ हुई मानी जाती है। ब्रजवासी देवराज इन्द्र की पूजा किया करते थे, क्योंकि देवराज इन्द्र प्रसन्न होने पर वर्षा का आशीर्वाद देते। इससे अन्न पैदा होता। किंतु इस पर भगवान श्री कृष्ण ने ब्रजवासियों को समझाया कि इससे अच्छे तो हमारे पर्वत हैं, जो हमारी गायों को भोजन देते हैं। ब्रज के लोगों ने श्री कृष्ण की बात मानकर गोवर्धन पर्वत की पूजा करनी प्रारम्भ कर दी। जब इन्द्र देव ने देखा कि सभी लोग उनकी पूजा करने के स्थान पर गोवर्धन पर्वत की पूजा कर रहे हैं, तो उनके अंहकार को ठेस पहुंची।
क्रोधित होकर उन्होंने मेघों को गोकुल में जाकर खूब बरसने का आदेश दिया। आदेश पाकर मेघ ब्रजभूमि में मूसलाधार बारिश करने लगे। ऐसी बारिश देखकर सभी भयभीत हो गए तथा श्री कृष्ण की शरण में पहुंचे। श्री कृ्ष्ण से सभी को गोवर्धन पर्वत की शरण में चलने को कहा। जब सब गोवर्धन पर्वत के निकट पहुंचे, तो भगवान श्री कृष्ण ने गोवर्धन को अपनी कनिष्का अंगुली पर उठा लिया। सभी ब्रजवासी भाग कर गोवर्धन पर्वत की नीचे चले गए। ब्रजवासियों पर एक बूंद भी जल नहीं गिरा। यह चमत्कार देखकर इन्द्रदेव को अपनी गलती का अहसास हुआ और वे श्री कृष्ण से क्षमा मांगी। सात दिन बाद श्री कृष्ण ने गोवर्धन पर्वत नीचे रखा और ब्रजबासियों को प्रतिवर्ष गोवर्धन पूजा और अन्नकूट पर्व मनाने को कहा। तभी से यह पर्व मनाया जाता है।
पूजन से होते हैं धन्य-धान्य
ज्योतिषाचार्य पंडित धर्मेंद्र शास्त्री के अनुसार गोवर्धन पूजा करने से धन, धान्य, संतान और गोरस की प्राप्ति होती है। इस दिन घर के आंगन में गोवर्धन पर्वत की रचना की जाती है। गोवर्धन देव से प्रार्थना की जाती है कि पृथ्वी को धारण करने वाले भगवन आप हमारे रक्षक हैं। मुझे भी धन-संपदा प्रदान करें। यह दिन गौ दिवस के रूप में भी मनाया जाता है। एक मान्यता के अनुसार इस दिन गायों की सेवा करने से कल्याण होता है।
जिन क्षेत्रों में गाय होती हैं, वहां गायों को प्रात: स्नान करा कर, उन्हें कुमकुम, अक्षत, फूल-मालाओं से सजाया जाता है। गोवर्धन पर्व पर विशेष रूप से गाय-बैलों को सजाने के बाद गोबर का पर्वत बनाकर इसकी पूजा की जाती है। गोबर से बने श्री गोवर्धन पर रुई और करवे की सीके लगाकर पूजा की जाती है। गोबर पर खील, बताशे ओर शक्कर के खिलौने चढ़ाये जाते हैं तथा सायंकाल में भगवान को छप्पन भोग चढ़ाया जाता है।
अन्नकूट पर्व 
अन्नकूट पर्व भी गोवर्धन पर्व से ही संबंधित है। इस दिन भगवान विष्णु जी को 56 भोग लगाए जाते हैं। इस महोत्सव के विषय में कहा जाता है कि इस पर्व का आयोजन व दर्शन करने मात्र से व्यक्ति को अन्न की कमी नहीं होती है। उस पर अन्नपूर्णा की कृपा सदैव बनी रहती है। अन्नकूट एक प्रकार से सामूहिक भोज का दिन होता है। इस दिन परिवार के सदस्य एक जगह बनाई गई रसोई को भगवान को अर्पण करने के बाद प्रसाद स्वरूप ग्रहण करते हैं।



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आज के गोवर्धन पूजा एवं अन्नकूट पर्व पर आप सभी को शुभकामनायें

आज के  गोवर्धन पूजा  एवं  अन्नकूट पर्व पर आप सभी को शुभकामनायें 





आज दीपावली के अगले दिन अन्नकूट पर्व पर छप्पन से अधिक सब्जियों / फल के मिश्रण की सब्जी  बनाई जाती हैं । 
शायद मिक्स्ड वेज सब्जी की शुरुआत सर्वप्रथम यहीं से हुई है । 
अत्यंत स्वादिष्ट व् पौष्टिक सब्जी के साथ यह त्यौहार बेहद आनंद दायक होता है 

































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अन्नकूट । गोवर्धन पूजा । विश्वकर्मा दिवस | Annakut | Govardhan Puja | Vishwakarma Divas

दिवाली से अगले दिन अन्नकूट का पर्व मनाया जाता है. इस दिन मंदिरों में सभी सब्जियों को मिलाकर एक सब्जी बनाते हैं, जिसे अन्नकूट कहा जाता है. मंदिरों में इस अन्नकूट को खाने के लिए श्रद्धालुओं की भीड़ लगी होती है. अन्नकूट के साथ पूरी बनाई जाती है. कहीं-कहीं साथ में कढी़-चावल भी बनाए जाते हैं.
इसी दिन रात्रि समय में गोवर्धन पूजा भी की जाती है. गोवर्धन पूजा में गोबर से गोवर्धन बनाया जाता है और उसे भोग लगाया जाता है. उसके बाद धूप-दीप से पूजन किया जाता है. फिर घर के सभी सदस्य इस गोवर्धन की परिक्रमा करते हैं.
इसी दिन विश्वकर्मा दिवस भी मनाया जाता है. इस दिन मजदूर वर्ग अपने औजारों की पूजा करते हैं. फैक्टरी तथा सभी कारखाने इस दिन बन्द रहते हैं.



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Monday, October 12, 2015

क्या हमारे देश का कानून बेहद कमजोर नहीं है ???

क्या हमारे देश का कानून बेहद कमजोर नहीं है ???


4  साल से प्रशिक्षु शिक्षक अपनी नियुक्ति के लिए भटक रहे हैं , उनका गुनाह क्या है । 

और जो लोग इनकी मुश्किलों के लिए दोषी हैं , वो आराम से जी रहे हैं । 

शिक्षा मित्र मामले में प्रथम दृष्टया केस था की बगैर टेट शिक्षक कैसे बने , और उस पर डेट पर डेट लग रही थी । 

वो तो सुप्रीम कोर्ट का असर था की सुनवाई जल्द करनी पडी । 

वरना उमर गुजर जाती और हाई कोर्ट डेट पर डेट लगाती रहती । 


बात यह की शिक्षा मित्रों का या टेट पास वालों का कॅरियर बेहतर होना चाहिए , और बच्चों के शिक्षा के अधिकार का अच्छे से पालन होना चाहिए , जिससे आर टी ई अधिनियम का वास्तविक उद्देश्य पूरा हो सके । 
शिक्षा मित्रों को व टेट पास जो भी हों सही रास्ते से  गुणवत्ता परक शिक्षक बनाया जाना चाहिए । 

अब कानून की बात करते हैं - देश के कानून में भुगतता बेगुनाह ही है , और आराम कानून तोड़ने वाला उठाता है । 

जब तक कानून दोषियों को सजा नहीं देगा , तब तक कानून तोडा जाता रहेगा । 

जब भी कानून अपना फैसला दे तो साथ में उसके दोषियों के उचित दंड भी दे , चाहे उनकी सैलरी से रिकवरी की जाये या कुछ और । 

यहाँ टेट पास लाखों की संख्या में थे , वरना आम इंसान कहाँ तक कोर्ट में लड़ता और इसका खर्च उठाता । 
अब यह कोर्ट का खर्च किस से मिले , जाहिर से बात है की जो भी दोषी हों उनकी सेलरी से मुआवजा की राशि इन टेट पास वालों को दिलवा दो , इसके बाद 
अपने आप कानून में सुधार आने लगेगा । 

बात सिर्फ टेट पास वालों की नहीं है , हिंदुस्तान में भ्रस्टाचार अपने आप समाप्त होने लगेगा जब कानून तेजी से प्रथम दृष्टया केसों में फैसला देने लगे ,

और अन्य केसेस भी त्वरित गति  निबटाए । 

साथ ही न्याय सस्ता हो और आसान प्रक्रिया बनाई जाए 

आसान प्रक्रिया ऐसी हो सकती है - आप केस ऑनलइन दर्ज कर सकें , और उसके सपोर्टिंग डॉक्यूमेंट ऑनलाइन अपलोड कर सकें ,
उसके बात प्रथम दृष्टया बातों पर पहले ध्यान दिया जाए । 
दोनों पक्षों की हियरिंग ऑनलाइन चेट के माध्यम से दर्ज की जा सकती है , उसके बाद जैसा जज चाहें उनके लिखित दस्तावेज के प्रिंट आउट को हस्ताक्षर सहित अपने न्यायलय में मंगवा लें । 
उसके बाद केवल ख़ास मुद्दों पर सुनवाई के लिए दोनों पक्षों को पर्सनल हियरिंग के लिए बुलाया जा सकता है ।

हमारे देश के आर टी आई सिस्टम भी गन्दा है , ऑनलाइन आर टी आई का प्रावधान नहीं है , सी आई सी ने ऐसा प्रबंध कर रखा है की वह जो चाहे फैसला दे ओरल आधार पर , बाद में भले ही किसी पक्ष को गलत भी लगे लेकिन वह उसका रिव्य अपील नहीं फाइल कर सकता , यह सब सी आई सी  ने अपनी सुरक्षा के लिये कर रखा है । 
और उसके बाद फिर आदमी को कोर्ट के चक्कर लगाने पड़ेंगे । 

2009 -10 के काल में अन्ना आंदोलन के दौरान आर टी आई मजबूत थी , लेकिन दिनों दिन यह कमजोर होती चली गई और कमजोर होती जा रही है । 
उस दौरान कुछ महत्वपूर्ण फैसले ऐसे थे -
देश का कोई भी नागरिक किसी भी सरकारी अधिकारी की ए सी आर / वार्षिक गोपनीय रिपोर्ट ( जो की प्रमोशन के लिए उपयोग की जाती है ) मांग सकता है ,
इस से पारदर्शिता बढ़ी और प्रमोशन में चापलूसी और हेरा फेरी पर रोक लगने लगी , बड़े अधिकारी और नेताओं के हाथ बंधने लगे । 

नेताओं और अधिकारियों को यह सब पसंद नहीं आ रहा था , तो उन्होंने आर टी आई कानून में बदलाव करके गोपनीयता के नाम पर यह सब बंद करवा दिया । 
सी आई सी अपने फैसलों को रिव्य करती है , मगर सरकारी पक्ष को बचाने के लिए , उसने अपने गलत फैसले आम आदमी के सूचना के अधिकार के पक्ष में कभी रिव्यू  नहीं किये । 

अगर कोई जन सूचना अधिकारी अधिकारी झूठ में यह भी कह दे की उसने मांगी गयी सूचनाएँ मुहैया करा दी , तो आप दोबारा से उस डॉक्यूमेंट को नहीं मांग सकते । 
रिपीटेड इंफोर्मेशन मांगना सूचना के अधिकार में अलाउ नहीं है । 


अंत में यही कहना है , की जब तक देश का कानून व् सिस्टम मजबूत नहीं होगा । 
तब तक देश का आम नागरिक गुलामी की तरह ही जीता रहेगा । 

लोगो को कजरीलाल नाम की गिरगिट से बहुत आशा थी , लेकिन वो सुपर गिरगिट निकला । 

वो वी आई पी कल्चर ख़त्म करने की बात कहता था , लेकिन आज खुद बंगले में रहता है , उसका खुद का जन  लोक पाल भी नहीं आ पाया , और आज तक उसमे भी कोई चूहा नहीं पकड़ा गया । अन्ना का जान लोक पाल भी फुस्स हो गया । 


बाबा राम देव रातों रात काला धन पर कानून बनाने को कोंग्रेस सरकार से कह रहे थे , की सारा काला  धन जो भी देश विदेश में हो उसको राष्ट्रिय संपत्ति घोषित कर दी जाए । 
लेकिन अब उनके कानून बनाने की योजना फुस्स हो चुकी है । 

बड़े बड़े पावर फुल लोगो के हाथ में देश का सिस्टम है , और राजनीती काले धन से ही चलती है ।
तो फिर काले धन पर कानून क्यों और कैसे बनेगा । 


कुल मिलाकर सीधी और सच्ची बात - जब तक देश का सिस्टम अच्छा नहीं बनेगा तब तक देश का आम गरीब इंसान कुचला जाता रहेगा 
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Friday, October 9, 2015

mustwatch शिक्षा का वास्तविक अर्थ , खुशियां और भलाई , ये वीडियो स्वयं के व्यक्तित्व विकास के साथ ही सबकी भलाई के लिये है , न्यू थ्री इडियट्स कॉन्सेप्ट आमिर खान

#mustwatch शिक्षा का वास्तविक अर्थ , खुशियां और भलाई , ये वीडियो स्वयं के व्यक्तित्व विकास के साथ ही सबकी भलाई के लिये है , न्यू थ्री इडियट्स कॉन्सेप्ट आमिर खान 

Admin Recommended Top Video


आमिर खान का एक बेहतरीन वीडियो - थ्री इडियट्स की भांति - शिक्षा का वास्तविक अर्थ , खुशियां और भलाई
 और बच्चों को कैसे प्रेरणा देनी है । 

अब तक के बेहतरीन वीडियो में से एक है , हमारे ब्लॉग की आपसे प्रार्थना है - कृपया जरूर देखें और हमें बताएं 

की कैसी लगी यह वीडियो 

 शिक्षा में क्रांति और बदलाव का  एक नया आयाम जोड़  सकते हैं , ये उम्दा विचार 

#mustwatch #video #amazing #superb





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Wednesday, August 26, 2015

More than 100 Keyboard Shortcuts must read SHARE IT

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Keyboard Shorcuts (Microsoft Windows)
1. CTRL+C (Copy)
2. CTRL+X (Cut)
3. CTRL+V (Paste)
4. CTRL+Z (Undo)
5. DELETE (Delete)
6. SHIFT+DELETE (Delete the selected item permanently without placing the item in the Recycle Bin)
7. CTRL while dragging an item (Copy the selected item)
8. CTRL+SHIFT while dragging an item (Create a shortcut to the selected item)
9. F2 key (Rename the selected item)
10. CTRL+RIGHT ARROW (Move the insertion point to the beginning of the next word)
11. CTRL+LEFT ARROW (Move the insertion point to the beginning of the previous word)
12. CTRL+DOWN ARROW (Move the insertion point to the beginning of the next paragraph)
13. CTRL+UP ARROW (Move the insertion point to the beginning of the previous paragraph)
14. CTRL+SHIFT with any of the arrow keys (Highlight a block of text)
SHIFT with any of the arrow keys (Select more than one item in a window or on the desktop, or select text in a document)
15. CTRL+A (Select all)
16. F3 key (Search for a file or a folder)
17. ALT+ENTER (View the properties for the selected item)
18. ALT+F4 (Close the active item, or quit the active program)
19. ALT+ENTER (Display the properties of the selected object)
20. ALT+SPACEBAR (Open the shortcut menu for the active window)
21. CTRL+F4 (Close the active document in programs that enable you to have multiple documents opensimultaneou sly)
22. ALT+TAB (Switch between the open items)
23. ALT+ESC (Cycle through items in the order that they had been opened)
24. F6 key (Cycle through the screen elements in a window or on the desktop)
25. F4 key (Display the Address bar list in My Computer or Windows Explorer)
26. SHIFT+F10 (Display the shortcut menu for the selected item)
27. ALT+SPACEBAR (Display the System menu for the active window)
28. CTRL+ESC (Display the Start menu)
29. ALT+Underlined letter in a menu name (Display the corresponding menu) Underlined letter in a command name on an open menu (Perform the corresponding command)
30. F10 key (Activate the menu bar in the active program)
31. RIGHT ARROW (Open the next menu to the right, or open a submenu)
32. LEFT ARROW (Open the next menu to the left, or close a submenu)
33. F5 key (Update the active window)
34. BACKSPACE (View the folder onelevel up in My Computer or Windows Explorer)
35. ESC (Cancel the current task)
36. SHIFT when you insert a CD-ROMinto the CD-ROM drive (Prevent the CD-ROM from automatically playing)
Dialog Box - Keyboard Shortcuts
1. CTRL+TAB (Move forward through the tabs)
2. CTRL+SHIFT+TAB (Move backward through the tabs)
3. TAB (Move forward through the options)
4. SHIFT+TAB (Move backward through the options)
5. ALT+Underlined letter (Perform the corresponding command or select the corresponding option)
6. ENTER (Perform the command for the active option or button)
7. SPACEBAR (Select or clear the check box if the active option is a check box)
8. Arrow keys (Select a button if the active option is a group of option buttons)
9. F1 key (Display Help)
10. F4 key (Display the items in the active list)
11. BACKSPACE (Open a folder one level up if a folder is selected in the Save As or Open dialog box)
Microsoft Natural Keyboard Shortcuts
1. Windows Logo (Display or hide the Start menu)
2. Windows Logo+BREAK (Display the System Properties dialog box)
3. Windows Logo+D (Display the desktop)
4. Windows Logo+M (Minimize all of the windows)
5. Windows Logo+SHIFT+M (Restorethe minimized windows)
6. Windows Logo+E (Open My Computer)
7. Windows Logo+F (Search for a file or a folder)
8. CTRL+Windows Logo+F (Search for computers)
9. Windows Logo+F1 (Display Windows Help)
10. Windows Logo+ L (Lock the keyboard)
11. Windows Logo+R (Open the Run dialog box)
12. Windows Logo+U (Open Utility Manager)
13. Accessibility Keyboard Shortcuts
14. Right SHIFT for eight seconds (Switch FilterKeys either on or off)
15. Left ALT+left SHIFT+PRINT SCREEN (Switch High Contrast either on or off)
16. Left ALT+left SHIFT+NUM LOCK (Switch the MouseKeys either on or off)
17. SHIFT five times (Switch the StickyKeys either on or off)
18. NUM LOCK for five seconds (Switch the ToggleKeys either on or off)
19. Windows Logo +U (Open Utility Manager)
20. Windows Explorer Keyboard Shortcuts
21. END (Display the bottom of the active window)
22. HOME (Display the top of the active window)
23. NUM LOCK+Asterisk sign (*) (Display all of the subfolders that are under the selected folder)
24. NUM LOCK+Plus sign (+) (Display the contents of the selected folder)
MMC COnsole Windows Shortcut keys
1. SHIFT+F10 (Display the Action shortcut menu for the selected item)
2. F1 key (Open the Help topic, if any, for the selected item)
3. F5 key (Update the content of all console windows)
4. CTRL+F10 (Maximize the active console window)
5. CTRL+F5 (Restore the active console window)
6. ALT+ENTER (Display the Properties dialog box, if any, for theselected item)
7. F2 key (Rename the selected item)
8. CTRL+F4 (Close the active console window. When a console has only one console window, this shortcut closes the console)
Remote Desktop Connection Navigation
1. CTRL+ALT+END (Open the Microsoft Windows NT Security dialog box)
2. ALT+PAGE UP (Switch between programs from left to right)
3. ALT+PAGE DOWN (Switch between programs from right to left)
4. ALT+INSERT (Cycle through the programs in most recently used order)
5. ALT+HOME (Display the Start menu)
6. CTRL+ALT+BREAK (Switch the client computer between a window and a full screen)
7. ALT+DELETE (Display the Windows menu)
8. CTRL+ALT+Minus sign (-) (Place a snapshot of the active window in the client on the Terminal server clipboard and provide the same functionality as pressing PRINT SCREEN on a local computer.)
9. CTRL+ALT+Plus sign (+) (Place asnapshot of the entire client window area on the Terminal server clipboardand provide the same functionality aspressing ALT+PRINT SCREEN on a local computer.)
Microsoft Internet Explorer Keyboard Shortcuts
1. CTRL+B (Open the Organize Favorites dialog box)
2. CTRL+E (Open the Search bar)
3. CTRL+F (Start the Find utility)
4. CTRL+H (Open the History bar)
5. CTRL+I (Open the Favorites bar)
6. CTRL+L (Open the Open dialog box)
7. CTRL+N (Start another instance of the browser with the same Web address)
8. CTRL+O (Open the Open dialog box,the same as CTRL+L)
9. CTRL+P (Open the Print dialog box)
10. CTRL+R (Update the current Web )
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Sunday, July 5, 2015

News : सुकन्या समृद्धि योजना में 0.1 फीसदी बढ़ा ब्याज

News : सुकन्या समृद्धि योजना में 0.1 फीसदी बढ़ा ब्याज

 सुकन्या समृद्धि योजना के तहत अब लाड़लियों को 0.1 फीसदी अधिक ब्याज मिलेगा। पहले इस योजना के तहत खाता खोलने पर ब्याज दर प्रतिवर्ष 9.1 फीसदी थी। अब यह 9.2 फीसदी प्रतिवर्ष मिलेगी। सुकन्या समृद्धि योजना के प्रति बढ़ते लोगों के आकर्षण के चलते इसमें संशोधन किया गया है। ब्याज दर में बढ़ोतरी के अलावा परिपक्व व जमा राशि दोनों को आयकर मुक्त किया गया है।

सुकन्या समृद्धि योजना के तहत बेटी के जन्म से लेकर 10 वर्ष की आयु तक कभी भी किसी भी डाकघर और बैंक में यह खाता खोला जा सकता है। प्रवर डाकपाल मुख्य डाकघर शिमला पीसी गौतम ने ब्याज दर 0.1 फीसदी बढ़ने की पुष्टि की है।
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Sunday, June 21, 2015

अंतरराष्ट्रिय योग दिवस 21 जून / International Yoga Day 21st June

अंतरराष्ट्रिय योग दिवस 21 जून / International Yoga Day 21st June

आसन कहां और कैसे करें

- खुले में ताजा हवा में योगासन करना बेहतर है। अगर ऐसा मुमकिन नहीं हो, तो कहीं भी (एसी में भी) कर सकते हैं।




- जहां योगासन करें, वहां माहौल शांत होना चाहिए। शोर-शराबा न हो। हल्की आ‌वाज में मन को शांत करनेवाला म्यूजिक चला सकते हैं।

- सीधे फर्श पर न करें। जमीन पर योगा मैट, दरी या कालीन बिछाकर योग करें।

- थोड़े ढीले कॉटन के कपड़े पहनना बेहतर रहता है। टी-शर्ट व ट्रैक पैंट आदि में भी कर सकते हैं।

- आसन धीरे और तेजी, दोनों तरह से करना फायदेमंद है। जल्दी करें तो कार्डियो (दिल के लिए अच्छा) और धीरे व रुककर करें तो स्ट्रेंथनिंग (मसल्स के लिए बढ़िया) एक्सर्साइज होती है।

- योगासन आंखें बंद करके करें। ध्यान शरीर के उन हिस्सों पर लगाएं, जहां आसन का असर हो रहा है, जहां दबाव पड़ रहा है। भाव से करेंगे तो प्रभाव जल्दी और ज्यादा होगा।

- योग में सांस लेने और छोड़ने की बहुत अहमियत है। इसका सीधा फंडा है : जब भी शरीर फैलाएं, पीछे की तरफ जाएं, सांस लें और जब भी शरीर सिकुड़े या आगे की ओर झुकें, सांस छोड़ते हुए झुकें।

आसन कब करें
सुबह-शाम कभी भी, लेकिन भरे पेट नहीं। पूरा खाना खाने के 3-4 घंटे बाद और हल्के स्नैक्स के घंटे भर बाद योगासन कर सकते हैं। चाय, छाछ आदि तरल चीजें लेने के आधे घंटे बाद और पानी पीने के 10-15 मिनट बाद करना बेहतर रहता है। सुबह टाइम नहीं है तो रात में डिनर से आधा घंटा पहले कर लें।

बरतें ये सावधानियां
- योग में विधि, समय, निरंतरता, एकाग्रता और सावधानी जरूरी है।

- झटके से न करें और उतना ही करें, जितना आसानी से कर पाएं। धीरे-धीरे अभ्यास बढ़ाएं।

- कमर दर्द हो तो आगे न झुकें, पीछे झुक सकते हैं।

- अगर हर्निया हो तो पीछे न झुकें।

- हार्ट की बीमारी/ब्लड प्रेशर वाले और शरीर से कमजोर व्यक्तियों को तेजी से योगासन नहीं करना चाहिए।

- 3 साल से बड़े बच्चे हल्के योग और प्राणायाम कर सकते हैं। मुश्किल आसन और क्रियाएं न करें।

- प्रेग्नेंसी में मुश्किल आसन, कपालभाति कतई न करें। महिलाएं पीरियड्स के दौरान, नॉर्मल डिलिवरी के 3 महीने तक और सिजेरियन ऑपरेशन के 6 महीने तक न करें।

कॉमन गलतियां

फाइनल पॉश्चर तक पहुंचने में जल्दबाजी
किसी भी आसन के फाइनल पॉश्चर तक पहुंचने की जल्दबाजी न करें। अगर तरीका जरा भी गलत हो गया तो फाइनल पॉश्वर तक पहुंचने का कोई फायदा नहीं। फाइनल पॉश्चर तक नहीं भी पहुंच पा रहे, लेकिन तरीका सही है तो आप सही ट्रैक पर हैं। मंजिल पर पहुंचने में देर लगेगी, लेकिन पहुंचेंगे जरूर।

फौरन असर की उम्मीद
योगासन का असर होने में वक्त लगता है। फौरन नतीजों की उम्मीद न करें। खुद को कम-से-कम 6 महीने का वक्त दें और तभी तय करें कि असर हो रहा है या नहीं।

दवाएं छोड़ना
जब भी किसी बीमारी से छुटकारे के लिए योगासन करें तो एक्सपर्ट से पूछकर ही करें। अक्सर योगासन का असर फौरन नहीं होता है। ऐसे में तुरंत दवा बंद न करें। जब बेहतर लगे तो टेस्ट कराएं और फिर डॉक्टर की सलाह से ही दवा बंद करे।

कुछ भी खा सकते हैं
योगासन करते हैं तो भी खाने पर कंट्रोल जरूरी है। अगर हाई कैलरी और हाई-फैट वाला फूड या जंक फूड या तेज मिर्च-मसाले वाला खाना खाते रहेंगे तो योग का खास असर नहीं होगा।

सिर्फ रोग के लिए नहीं योग
लोग बीमारी का इलाज योगासन से करते हैं और फिर योगासन को छोड़ देते हैं। योगासन बीमारियों के इलाज करने के लिए नहीं है, बल्कि इसे लगातार किया जाना चाहिए जिससे कि बीमारियां हो ही ना।

अगर सिर्फ 10 मिनट का ही वक्त हो तो...
- 5 मिनट गर्दन, कंधों, कुहनियों, हाथों, कमर, घुटनों, पैरों, पंजों आदि की सूक्ष्म क्रियाएं (हर दिशा में घुमाना और स्ट्रेच करना) कर लें।
- 2-3 मिनट सूर्य नमस्कार कर लें।
- 3 मिनट अपनी जगह खड़े होकर ही जॉगिंग कर लें।

ऑफिस में करनेवाले योग
सूक्ष्म क्रियाएं : ऑफिस में 7-8 घंटे की ड्यूटी के दौरान 2 बार गर्दन, कंधों, कुहनियों, हाथों, कमर, घुटनों, पैरों, पंजों आदि की सूक्ष्म क्रियाएं (हर दिशा में घुमाना और स्ट्रेच करना) कर लें। 5 मिनट से ज्यादा नहीं लगेंगे।
ताड़ासन : बाथरूम या फिर अपनी सीट पर ही खड़े होकर ताड़ासन (पंजों के बल खड़े होकर दोनों हथेलियों को आपस में फंसाकर सिर के ऊपर जितना हो सके, खीचें।)
डीप ब्रीदिंग : जब भी थकान लगे, अपनी सीट पर ही आंखें बंद करें और लंबी-गहरी सांस लें और छोड़ें। 2-3 मिनट में भी मन रिलैक्स हो जाएगा।

रोजाना करें इनका अभ्यास

1. ताड़ासन
कैसे करें : दोनों पैरों को मिलाकर खड़े हो जाएं। हाथों की उंगलियों को आपस में फंसा लें। अब सांस भरते हुए हाथों को ऊपर की ओर उठाएं और पैरों के पंजों पर शरीर का भार लाते हुए एड़ियां भी उठा लें। ऊपर उठे हाथों को अब थोड़ा सिर के पीछे की ओर ले जाएं, जिससे कमर के निचले हिस्से पर खिंचाव आने लगे। सांस सामान्य रखते हुए पूरे शरीर को ज्यादा-से-ज्यादा ऊपर की ओर जितना खींच सकते हैं, खींच कर रखें। चेहरे पर प्रसन्नता का भाव रखते हुए कुछ देर के लिए यहां रुक जाएं। इस पोजिशन में जब तक संभव हो रुकने के बाद सांस निकालते हुए हाथों को साइड से नीचे की ओर ले आएं। इसका अभ्यास दो से तीन बार करें।

लाभ : शरीर को सुगढ़ बनाता है। नर्वस सिस्टम को एक्टिव करता है और मांसपेशियों में लचीलापन लाता है। गर्दन दर्द व कंधे की जकड़न, ऑस्टियोपोरोसिस, स्लिप डिस्क, गठिया और जोड़ों के दर्द में फायदेमंद है। साथ ही, शरीर को तरोताजा बनाए रखता है। दिन में जब भी थकान लगे, इस आसन को करके हल्कापन महसूस कर सकते हैं। बच्चों की लंबाई बढ़ाने वाला है यह आसन।

सावधानियां : हड़बड़ाहट में न करें। पैरों पर बैलेंस बनाए रखें।

2. उर्ध्वहस्तोत्तानासन
कैसे करें : दोनों पैरों में एक-डेढ़ फुट का फर्क रख कर खड़े हो जाएं। दोनों हाथों को सामने लाकर दोनों की उंगलियों को आपस में फंसा लें और उन्हें ऊपर की ओर ज्यादा-से-ज्यादा उठाएं। बाजू कानों को छूनी चाहिए। अब हाथों को ऊपर की ओर खींचे और सांस निकालते हुए कमर से लेफ्ट साइड में झुक जाएं। घुटने न मोड़ें और एड़ी को भी ऊपर की ओर न उठाएं। ज्यादा-से-ज्यादा झुकने के बाद सांस की स्पीड और कमर के साइड में पड़ते हुए खिंचाव को अनुभव करें। जहां तक संभव हो, इस पोजिशन में रुकने के बाद सांस भरते हुए धीरे से पहले की स्थिति में वापस आ जाएं और दूसरी ओर झुककर भी ऐसा ही करें। 4-5 बार दोनों ओर से ऐसा कर लें।

लाभ : मोटापे को दूर कर शरीर को सुडौल बनाता है। कमर के साइड की फालतू चर्बी को कमकर कमर को पतला करता है। पैंक्रियाज को सक्रिय कर इंसुलिन को बनाने में सहायक है, जिससे डायबीटीज़ में लाभ मिलता है। यह लिवर और किडनी को भी मजबूत देता है। रीढ़ की हड्डी का टेढ़ापन, कमर दर्द, गर्दन दर्द व कंधे की जकड़न से रोकथाम करने वाला है यह।

सावधानी : कमर में ज्यादा दर्द रहता हो तो इसका अभ्यास न करें।

3. त्रिकोणासन
कैसे करें : खड़े होकर दोनों पैरों को ज्यादा-से-ज्यादा खोल लें। दोनों हाथों को कंधों के पैरलल साइड में उठा लें। लंबी-गहरी सांस भरें और सांस निकालते हुए कमर को लेफ्ट साइड में घुमाएं और आगे की ओर झुककर, उलटे हाथ से सीधे पैर के पंजे को छूने की कोशिश करें। अगर पंजा आसानी से छू पाएं, तो हथेली को पैर के पंजे के बाहर की तरफ जमीन पर टिका दें। साथ ही, सीधा हाथ कंधे की सीध में आकाश की तरफ उठाएं और ऊपर की ओर खींचे। नीचे वाला हाथ नीचे की तरफ और ऊपर वाला हाथ ऊपर की तरफ खिंचा रहेगा। गर्दन को ऊपर की तरफ घुमाकर ऊपर वाले हाथ की ओर देखें। सांस की गति सामान्य रखते हुए इस आसन में जब तक संभव हो, रुके रहें। फिर सांस भरते हुए धीरे से वापस आ जाएं। इसी प्रकार दूसरी ओर बदलकर करें। दोनों ओर से यह आसन 3-4 बार कर लें।

लाभ : कमर और गर्दन की मांसपेशियों को लचीला बनाकर उनकी ताकत बढ़ाता है। पैरों, घुटनों, पिंडलियों, हाथों, कंधों और छाती की मांसपेशियां लचीली बनी रहती हैं और कूल्हे की हड्डी को मजबूती मिलती है। पाचन तंत्र को बल मिलता है। कब्ज, गैस व डायबीटीज़ को दूर करने वाला है। शरीर को सुडौल बनाता है। नर्वस सिस्टम को स्वस्थ कर यह आसन मन व मस्तिष्क को बल देने वाला है। बच्चों की लंबाई बढ़ाने में भी यह विशेष सहायक है।

सावधानियां : जितने आराम से कमर को आगे झुकाकर मोड़ सकें, उतना ही करें। जल्दबाजी और झटके से बचें। गर्दन दर्द, कमर दर्द, साइटिका दर्द, ऑस्टियोपॉरोसिस, माइग्रेन, स्लिप डिस्क, पेट की सर्जरी और हाई ब्लड प्रेशर के मरीज इसका अभ्यास न करें।

4. मंडूकासन
कैसे करें : वज्रासन में बैठ जाएं। हाथों की मुठ्ठियां बंदकर पेट पर रख लें। सांस निकालें और पेट अंदर की ओर दबाएं। मुठ्ठियों से भी पेट को दबाकर आगे झुक जाएं। सांस सामान्य रखकर सिर को थोड़ा उठा लें। कोहनियों को शरीर के साथ सटा कर रखें।

लाभ : मंडूकासन पैंक्रियाज़ को सक्रिय कर इंसुलिन बनाने में मदद करता है। इससे शुगर लेवल कंट्रोल होता है। यह पाचन तंत्र को बल देकर उससे जुड़े रोगों को ठीक करने वाला है। कब्ज, गैस, डकार, भूख न लगना, अपच, लिवर की कमजोरी, स्त्री रोग, हर्निया और अस्थमा में लाभकारी है।

सावधानियां : घुटनों में दर्द होने पर वज्रासन न करें। ऐसे में कुर्सी पर बैठकर यह आसन किया जा सकता है। अगर कमर दर्द रहता हो तो इस आसन में आगे न झुकें।

5. भुजंगासन
कैसे करें : पेट के बल लेट जाएं और हाथों को कंधों के नीचे रखकर कोहनियों को उठा लें। पीछे दोनों पैरों को मिलाकर रखें। अब सांस भरते हुए आगे से सिर और छाती को नाभि तक ऊपर उठाएं। इससे ऊपर नहीं। अब सिर को ऊपर की ओर उठाकर सांस की गति सामान्य रखते हुए जहां तक संभव हो रुके रहें। फिर सांस निकालते हुए धीरे से वापस आ जाएं। 2-3 बार ऐसा कर लें।

लाभ : यह रीढ़ की हड्डी को लचीला बनाता है। कमर दर्द, स्लिप डिस्क, सर्वाइकल स्पॉन्डिलाइटिस और ऑस्टियोपॉरोसिस में लाभकारी है। लिवर, किडनी, फेफड़े और थायरॉइड ग्रंथि को बल देने वाला है।

सावधानियां : हर्निया या पेट में अल्सर हो या फिर पेट की सर्जरी हुई हो तो न करें।

6. नौकासन
कैसे करें : लेटकर दोनों हाथों को सिर के सामने सीधा कर आपस में जोड़ लें। पीछे दोनों पैर मिले रहेंगे। अब सांस भरते हुए दोनों हाथों को, सिर को ऊपर की ओर उठाएं और साथ ही पीछे पैरों को भी ऊपर की ओर उठा लें। हाथ व पैर को ज्यादा से ज्यादा ऊपर की ओर उठाने के बाद हाथों को आगे और पैरों को पीछे की ओर खींचें। सांस की गति सामान्य रखते हुए यथाशक्ति आसन में रुके रहें। फिर धीरे से हाथ और पैरों को वापस जमीन पर ले आएं। 2-3 बार ऐसा करें।

लाभ : रीढ़ की हड्डी के रोगों में बड़ा लाभकारी हैं। इससे नर्वस सिस्टम बेहतर होता है। पेट की मांसपेशियों की ताकत बढ़ती है और पाचन सुधरता है। आमाशय, लिवर, आंत, फेफड़े और किडनी आदि अंगों को भी बल देता है।
सावधानियां : हर्निया या पेट का ऑपरेशन, आंतों में घाव या पेप्टिक अल्सर हो तो न करें।

7. उत्तानपादासन
कैसे करें : पीठ के बल सीधे लेट जाएं। पैरों को आपस में मिला लें। हाथों को जंघाओं के पास जमीन पर रख लें। हथेलियों का रुख नीचे की ओर रहेगा। अब सांस भरते हुए दोनों पैरों को 60 डिग्री तक ऊपर उठाकर रुक जाएं। हथेलियां जमीन पर ही रहेंगी। सांस की गति को सामान्य रखते हुए प्रसन्नता के भाव से जब तक संभव हो, आसन में रुके रहें। कुछ देर रुकने के बाद आपको पेट के ऊपर कंपन अनुभव होने लगेगा। अब सांस निकालते हुए धीरे से बिना सर उठाए पैरों को नीचे ले आएं। ऐसा 2-3 बार करें।

लाभ : यह पेट के थुलथुलेपन को दूरकर मोटापा कम करता है। पेट की मांसपेशियों को मजबूती करता है। पाचन तंत्र को बेहतर करता है और दिल व फेफड़ों को स्वस्थ बनाए रखता है। लो ब्लड प्रेशर में लाभकारी है। बालों के झड़ने और सफेद होने से रोकने में भी मदद करता है।
सावधानियां : कमर दर्द, हर्निया और हाई बीपी की स्थिति में इसे न करें।

8. कटिचक्रासन
कैसे करें : दोनों हथेलियों को सिर के नीचे रख लें और दोनों पैरों को मोड़ लें। घुटने आपस में मिले रहेंगे। सांस निकालते हुए घुटनों को एक साथ लेफ्ट साइड में ले जाएं और गर्दन को राइट साइड में। सांस की गति सामान्य रखते हुए यथाशक्ति रुके रहें। यहां घुटने के साथ घुटने और एड़ी के ऊपर एड़ी रहेगी। सांस भरते हुए धीरे से वापस आ जाएं। ऐसे ही दूसरी ओर से करें। दोनों ओर से 3-3 बार कर लें।

लाभ : शरीर की जकड़न को दूर कर यह आसन कमर की मांसपेशियों में लचीलापन और मजबूती लाता है। इससे नर्वस सिस्टम बेहतर होता है। यह पैंक्रियाज़ पर असर डालता है, इसिलए डायबीटीज में लाभकारी है। साथ ही, किडनी, लिवर, आंतें, मलाशय, मूत्राशय आदि पाचन तंत्र के अंगों को मजबूत बनाने में मदद करता है। यह कमर दर्द और साइटिका दर्द को दूर करने में भी लाभकारी है।

सावधानियां : कमर दर्द, हर्निया और हाई बीपी की स्थिति में इसे न करें।

9. पवनमुक्तासन
कैसे करें : पवनमुक्तासन के लिए दोनों पैरों को घुटनों से मोड़कर पेट की ओर लाएं और हाथों से पैरों को कसकर पकड़ लें। सांस निकालें। सिर उठाकर ठोड़ी को घुटनों के बीच रखें। अगर कमर या गर्दन में दर्द रहता हो तो सिर न उठाएं।

लाभ : यह कब्ज, गैस, भूख न लगना और लिवर की कमजोरी को दूर करने वाला है। डायबीटीज में भी लाभकारी है। इसके अभ्यास से मूत्रदोष, हर्निया, स्त्री रोग, कमर दर्द, अस्थमा और हृदय रोग में लाभ पहुंचता है।

सावधानी : कमर दर्द या गर्दन दर्द रहता हो तो इस आसन में सिर न उठाएं।

10. शवासन
कैसे करें : शरीर को ढीला छोड़ कर आराम से पीठ के बल लेट जाएं। दोनों पैरों में एक-डेढ़ फुट का अंतर रखें और दोनों हाथ शरीर से थोड़ी दूरी पर ढीले छोड़ दें। आंखें बंद कर अपने ध्यान को आती-जाती सांस पर ले आएं। अब ध्यान को शरीर के अंगों पर लाएं और नीचे से ऊपर प्रत्येक अंग को साक्षी भाव से महसूस करते जाएं। महसूस करें कि पूरा शरीर शव जैसा पड़ा है। न हिलता है, न डुलता है, बस आराम ही आराम है। उस वक्त मन में कोई विचार नहीं लाना है। कुछ देर आराम करने के बाद अपने ध्यान को सांसों पर लाएं। लंबी, गहरी सांस भरें व निकालें। अब हाथों और पैरों की उंगलियों में चेतना का अनुभव करें। धीरे-धीरे हाथों को उठाकर हथेलियों को आपस में रगड़कर आंखों पर रख लें। कुछ देर बाद हथेलियां हटा कर करवट लेते हुए धीरे से बैठ जाएं। इस आसन को 5-10 मिनट कर सकते हैं।

लाभ : मन को शांत करता है। थकान दूर करता है।

सावधानियां : जल्दबाजी न करें। आराम से करें। सूर्य नमस्कार
सूर्य नमस्कार एक संपूर्ण एक्सरसाइज है। अगर आपके पास ज्यादा वक्त नहीं है तो सुबह 10 बार सूर्य नमस्कार करने से भी आपके पूरे शरीर की एक्सरसाइज हो जाएगी। इससे शरीर के सारे जोड़ खुल जाते हैं और फ्लैक्सिबिलिटी भी आती है। इससे शरीर को ऊर्जा मिलती है और मानसिक तनाव से मुक्ति मिलती है। यह इम्यून सिस्टम और हॉर्मोनल सिस्टम को बैलेंस करता है। मोटापा घटाने में भी यह लाभकारी है। इसमें कुल 12 आसन हैं, जिनका शरीर पर अलग-अलग प्रभाव पड़ता है। सूर्य नमस्कार नीचे दिए तरीके से किया जा सकता है :

सूर्य नमस्कार
1. सबसे पहले दोनों हाथों को सीने पर जोड़कर (नमस्कार की तरह) सीधे खड़े हों।

2. सांस भरते हुए अपने दोनों हाथों को ऊपर की ओर कानों से सटाएं और कमर को पीछे की ओर स्ट्रेच करें।

3. सांस बाहर निकालते हुए और हाथों को सीधे रखते हुए आगे की ओर झुकें। हाथों को पैरों के राइट-लेफ्ट जमीन से स्पर्श करें। ध्यान रखें कि इस दौरान घुटने सीधे रहें।

4. सांस भरते हुए राइट पैर को पीछे की ओर ले जाएं और गर्दन को पीछे की ओर झुकाएं। इस स्थिति में कुछ समय तक रुकें।

5. अब सांस धीरे-धीरे छोड़ते हुए लेफ्ट पैर को भी पीछे ले जाएं और दोनों पैर की एड़ियों को मिलाकर शरीर को ऊपर की ओर स्ट्रेच करें।

6. सांस भरते हुए नीचे आएं और लेट जाएं। पेट जमीन से थोड़ा ऊपर रहेगा। अब सांस छोड़ें।

7. शरीर के ऊपरी भाग को सांस भरते हुए उठाएं और गर्दन को पीछे की ओर स्ट्रेच करें। कुछ सेकंड तक रुकें।

8. अब सांस छोड़ते हुए हिप्स को ऊपर की ओर उठाएं व सिर झुका लें। एड़ी जमीन से लगाएं।

9. दोबारा चौथी प्रक्रिया को अपनाएं लेकिन इसके लिए लेफ्ट पैर को आगे लाएं और गर्दन को पीछे की ओर झुकाते हुए स्ट्रेच करें।

10. लेफ्ट पैर को वापस लाएं और राइट के बराबर में रखकर तीसरी स्थिति में आ जाएं यानी घुटनों को सीधे रखते हुए हाथों से पैरों के राइट-लेफ्ट जमीन से टच करें।

11. सांस भरते हुए दोनों हाथों को कानों से सटाकर ऊपर उठें और पीछे की ओर स्ट्रेच करते हुए फिर दूसरी अवस्था में आ जाएं।

12.फिर से पहली स्थिति में आ जाएं।

किस बीमारी में कौन-सा करें
मोटापा
आसन : सारे आसन फायदेमंद। सूर्य नमस्कार, शलभासन, हस्तपादासन, उर्ध्वहस्तोत्तानासन, कटिचक्रासन ज्यादा असरदार।
प्राणायाम : कपालभाति व भस्त्रिका।

दिल की बीमारी
आसन : ताड़ासन, कटिचक्रासन, एक पैर से उत्तानपादासन, नौकासन, पवनमुक्तासन, बिलावासन (कैट पॉश्चर)
प्राणायाम : अनुलोम-विलोम, उज्जायी, भ्रामरी और ओम का जाप। कपालभाति और भस्त्रिका न करें।

डायबीटीज
आसन : उर्ध्वहस्तोत्तानासन, कटिचक्रासन (लेटकर), पवनमुक्तासन, भुजंगासन, धनुरासन, वज्रासन, मंडूकासन, उड्यानबंध
प्राणायाम : कपालभाति, अनुलोम-विलोम, अग्निसार क्रिया। भस्त्रिका न करें।

जोड़ों का दर्द
कमर दर्द : उत्तानपादासन, अर्धनौकासन, कटि चक्रासन, एक पैर से पवनमुक्तासन, अर्धभुजंगासन, अर्ध नौकासन, कैट पॉश्चर।
गर्दन में दर्द : गर्दन की सूक्ष्म क्रियाएं।

डिप्रेशन
आसन : सभी आसन (खासकर सूर्य नमस्कार, ताड़ासन, नौकास‌न आदि) फायदेमंद हैं।
प्राणायाम : नाड़ीशोधन, भ्रामरी के साथ बाकी प्राणायाम भी कारगर। मेडिटेशन खासकर असरदार।

नोट : यहां चंद योगासनों, प्राणायाम और ध्यान के तरीकों की जानकारी दी गई है। एक ही आसन, प्राणायाम या ध्यान को करने के दूसरे तरीके भी हैं। वे भी सही हैं। इसी तरह इनके अलावा और भी आसन, प्राणायाम और ध्यान हैं और वे भी कारगर हैं। आप किसी एक्सपर्ट से सीख कर ही आसन, प्राणायाम या ध्यान करना शुरू करें। किसी बीमारी की हालत में डॉक्टर की सलाह जरूर लें।

सावधानी : प्रेग्नेंट महिलाएं और कमर दर्द से पीड़ित इसे न करें। हाई ब्लडप्रेशर के मरीज धीरे-धीरे करें।



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VISHWA YOGA DIVAS 21 JUNE - SWASTHYA KI DISHA MEIN EK BEHTAR PRYAS

VISHWA YOGA DIVAS 21 JUNE - SWASTHYA KI DISHA MEIN EK BEHTAR PRYAS. 
BHARAT KA NAAM UNCHA RAKHNE KA EK UMDA KADAM








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Saturday, May 9, 2015

महाराणा प्रताप की जयंती पर शत शत नमन एवम शुभकामनायें

महाराणा प्रताप की जयंती पर शत शत नमन एवम शुभकामनायें

महाराणा प्रताप का जन्म संवत 1597 में हुआ था।
 महाराणा प्रताप का जन्म कुम्भलगढ दुर्ग में हुआ था। महाराणा प्रताप की माता का नाम जैवन्ताबाई था, जो पाली के सोनगरा अखैराज की बेटी थी। महाराणा प्रताप को बचपन में कीका के नाम से पुकारा जाता था। महाराणा प्रताप का राज्याभिषेक गोगुन्दा में हुआ


हल्दीघाटी का युद्ध
मुख्य लेख : हल्दीघाटी का युद्ध.

यह युद्ध १८ जून १५७६ ईस्वी में मेवाड तथा मुगलों के मध्य हुआ था। इस युद्ध में मेवाड की सेना का नेतृत्व महाराणा प्रताप ने किया था। इस युद्ध में महाराणा प्रताप की तरफ से लडने वाले एकमात्र मुस्लिम सरदार थे -हकीम खाँ सूरी।

इस युद्ध में मुगल सेना का नेतृत्व मानसिंह तथा आसफ खाँ ने किया। इस युद्ध का आँखों देखा वर्णन अब्दुल कादिर बदायूनीं ने किया। इस युद्ध को आसफ खाँ ने अप्रत्यक्ष रूप से जेहाद की संज्ञा दी। इस युद्ध में बींदा के झालामान ने अपने प्राणों का बलिदान करके महाराणा प्रताप के जीवन की रक्षा की।

महाराणा उदयसिंह की मृत्यु के पश्चात जब प्रतापसिंह गद्दी पर बैठे, भारत के बड़े भूभाग पर मुगल बादशाह अकबर का शासन था। बड़े-बड़े राजा महाराजाओं ने अकबर की आधीनता स्वीकार कर ली थी। वीरों की भूमि राजस्थान के अनेक राजाओं ने न केवल मुगल बादशाह की दासता स्वीकार की अपनी बहू बेटियोें की डोली भी समर्पित कर दी थी। महाराणा प्रताप इसके प्रबल विरोधी थे। उन्होंने मेवाड़ की पूर्ण स्वतन्त्रता का प्रयास जारी रखा और मुगल सम्राट के सामने झुकना कभी स्वीकार नहीं किया। अनेक बार अकबर ने उनके पास सन्धि के लिए प्रस्ताव भेजे और इच्छा व्यक्त की कि महाराणा प्रताप केवल एक बार उसे बादशाह मान ले लेकिन स्वाभिमानी प्रताप ने हर प्रस्ताव को ठुकरा दिया


यह थी कहानी -

अकबर के महासेनापति राजा मानसिंह, शोलापुर विजय करके लौट रहे थे। उदय सागर पर महाराणा ने उनके स्वागत का प्रबन्ध किया। हिन्दू नरेश के यहाँ भला अतिथि का सत्कार न होता, किंतु महाराणा प्रताप ऐसे राजपूत के साथ बैठकर भोजन कैसे कर सकते थे, जिसकी बुआ मुग़ल अन्त:पुर में हो। मानसिंह को बात समझने में कठिनाई नहीं हुई। अपमान से जले वे दिल्ली पहुँचे। उन्होंने सैन्य सज्जित करके चित्तौड़ पर आक्रमण कर दिया।

प्रताप और जहाँगीर का संघर्ष

हल्दीघाटी के इस प्रवेश द्वार पर अपने चुने हुए सैनिकों के साथ प्रताप शत्रु की प्रतीक्षा करने लगे। दोनों ओर की सेनाओं का सामना होते ही भीषण रूप से युद्ध शुरू हो गया और दोनों तरफ़ के शूरवीर योद्धा घायल होकर ज़मीन पर गिरने लगे। प्रताप अपने घोड़े पर सवार होकर द्रुतगति से शत्रु की सेना के भीतर पहुँच गये और राजपूतों के शत्रु मानसिंह को खोजने लगे। वह तो नहीं मिला, परन्तु प्रताप उस जगह पर पहुँच गये, जहाँ पर 'सलीम' (जहाँगीर) अपने हाथी पर बैठा हुआ था। प्रताप की तलवार से सलीम के कई अंगरक्षक मारे गए और यदि प्रताप के भाले और सलीम के बीच में लोहे की मोटी चादर वाला हौदा नहीं होता तो अकबर अपने उत्तराधिकारी से हाथ धो बैठता। प्रताप के घोड़े चेतक ने अपने स्वामी की इच्छा को भाँपकर पूरा प्रयास किया और तमाम ऐतिहासिक चित्रों में सलीम के हाथी के सूँड़ पर चेतक का एक उठा हुआ पैर और प्रताप के भाले द्वारा महावत का छाती का छलनी होना अंकित किया गया है।[4] महावत के मारे जाने पर घायल हाथी सलीम सहित युद्ध भूमि से भाग खड़ा हुआ।


राजपूतों का बलिदान - झाला सरदार

इस समय युद्ध अत्यन्त भयानक हो उठा था। सलीम पर प्रताप के आक्रमण को देखकर असंख्य मुग़ल सैनिक उसी तरफ़ बढ़े और प्रताप को घेरकर चारों तरफ़ से प्रहार करने लगे। प्रताप के सिर पर मेवाड़ का राजमुकुट लगा हुआ था। इसलिए मुग़ल सैनिक उसी को निशाना बनाकर वार कर रहे थे। राजपूत सैनिक भी उसे बचाने के लिए प्राण हथेली पर रखकर संघर्ष कर रहे थे। परन्तु धीरे-धीरे प्रताप संकट में फँसता जा रहे थे। स्थिति की गम्भीरता को परखकर 'झाला सरदार' ने स्वामिभक्ति का एक अपूर्व आदर्श प्रस्तुत करते हुए अपने प्राणों का बलिदान कर दिया। झाला सरदार 'मन्नाजी' तेज़ी के साथ आगे बढ़ा और प्रताप के सिर से मुकुट उतार कर अपने सिर पर रख लिया और तेज़ी के साथ कुछ दूरी पर जाकर घमासान युद्ध करने लगा। मुग़ल सैनिक उसे ही प्रताप समझकर उस पर टूट पड़े और प्रताप को युद्ध भूमि से दूर निकल जाने का अवसर मिल गया। उसका सारा शरीर अगणित घावों से लहूलुहान हो चुका था। युद्धभूमि से जाते-जाते प्रताप ने मन्नाजी को मरते देखा। राजपूतों ने बहादुरी के साथ मुग़लों का मुक़ाबला किया, परन्तु मैदानी तोपों तथा बन्दूकधारियों से सुसज्जित शत्रु की विशाल सेना के सामने समूचा पराक्रम निष्फल रहा। युद्धभूमि पर उपस्थित बाईस हज़ार राजपूत सैनिकों में से केवल आठ हज़ार जीवित सैनिक युद्धभूमि से किसी प्रकार बचकर निकल पाये।

 वनवास

महाराणा प्रताप चित्तौड़ छोड़कर वनवासी हो गए। महाराणी, सुकुमार राजकुमारी और कुमार घास की रोटियों और निर्झर के जल पर ही किसी प्रकार जीवन व्यतीत करने को बाध्य हुए। अरावली की गुफ़ाएँ ही अब उनका आवास थीं और शिला ही शैय्या थी। दिल्ली का सम्राट सादर सेनापतित्व देने को प्रस्तुत था। उससे भी अधिक वह केवल यह चाहता था कि प्रताप मुग़लों की अधीनता स्वीकार कर लें और उसका दम्भ सफल हो जाय। हिंदुत्व पर 'दीन-ए-इलाही' स्वयं विजयी हो जाता। प्रताप राजपूत की आन का वह सम्राट, हिंदुत्व का वह गौरव-सूर्य इस संकट, त्याग, तप में अम्लान रहा, अडिंग रहा। धर्म के लिये, आन के लिये यह तपस्या अकल्पित है। कहते हैं महाराणा ने अकबर को एक बार सन्धि-पत्र भेजा था, पर इतिहासकार इसे सत्य नहीं मानते। यह अबुल फ़ज़ल की मात्र एक गढ़ी हुई कहानी भर है। अकल्पित सहायता मिली, मेवाड़ के गौरव भामाशाह ने महाराणा के चरणों में अपनी समस्त सम्पत्ति रख दी। महाराणा इस प्रचुर सम्पत्ति से पुन: सैन्य-संगठन में लग गये। चित्तौड़ को छोड़कर महाराणा ने अपने समस्त दुर्गों का शत्रु से उद्धार कर लिया। उदयपुर उनकी राजधानी बना। अपने 24 वर्षों के शासन काल में उन्होंने मेवाड़ की केसरिया पताका सदा ऊँची रखी


पराक्रमी चेतक


महाराणा प्रताप का सबसे प्रिय घोड़ा 'चेतक' था। हल्दीघाटी के युद्ध में बिना किसी सहायक के प्रताप अपने पराक्रमी चेतक पर सवार हो पहाड़ की ओर चल पडे‌। उसके पीछे दो मुग़ल सैनिक लगे हुए थे, परन्तु चेतक ने प्रताप को बचा लिया। रास्ते में एक पहाड़ी नाला बह रहा था। घायल चेतक फुर्ती से उसे लाँघ गया, परन्तु मुग़ल उसे पार न कर पाये। चेतक, नाला तो लाँघ गया, पर अब उसकी गति धीरे-धीरे कम होती गई और पीछे से मुग़लों के घोड़ों की टापें भी सुनाई पड़ीं। उसी समय प्रताप को अपनी मातृभाषा में आवाज़ सुनाई पड़ी, "हो, नीला घोड़ा रा असवार।" प्रताप ने पीछे मुड़कर देखा तो उसे एक ही अश्वारोही दिखाई पड़ा और वह था, उसका भाई शक्तिसिंह। प्रताप के साथ व्यक्तिगत विरोध ने उसे देशद्रोही बनाकर अकबर का सेवक बना दिया था और युद्धस्थल पर वह मुग़ल पक्ष की तरफ़ से लड़ रहा था। जब उसने नीले घोड़े को बिना किसी सेवक के पहाड़ की तरफ़ जाते हुए देखा तो वह भी चुपचाप उसके पीछे चल पड़ा, परन्तु केवल दोनों मुग़लों को यमलोक पहुँचाने के लिए।

शक्तिसिंह द्वारा राणा प्रताप की सुरक्षा

जीवन में पहली बार दोनों भाई प्रेम के साथ गले मिले। इस बीच चेतक ज़मीन पर गिर पड़ा और जब प्रताप उसकी काठी को खोलकर अपने भाई द्वारा प्रस्तुत घोड़े पर रख रहा था, चेतक ने प्राण त्याग दिए। बाद में उस स्थान पर एक चबूतरा खड़ा किया गया, जो आज तक उस स्थान को इंगित करता है, जहाँ पर चेतक मरा था। प्रताप को विदा करके शक्तिसिंह खुरासानी सैनिक के घोड़े पर सवार होकर वापस लौट आया। सलीम को उस पर कुछ सन्देह पैदा हुआ। जब शक्तिसिंह ने कहा कि प्रताप ने न केवल पीछा करने वाले दोनों मुग़ल सैनिकों को मार डाला अपितु मेरा घोड़ा भी छीन लिया। इसलिए मुझे खुरासानी सैनिक के घोड़े पर सवार होकर आना पड़ा। सलीम ने वचन दिया कि अगर तुम सत्य बात कह दोगे तो मैं तुम्हें क्षमा कर दूँगा। तब शक्तिसिंह ने कहा, "मेरे भाई के कन्धों पर मेवाड़ राज्य का बोझा है। इस संकट के समय उसकी सहायता किए बिना मैं कैसे रह सकता था।" सलीम ने अपना वचन निभाया, परन्तु शक्तिसिंह को अपनी सेवा से हटा दिया। राणा प्रताप की सेवा में पहुँचकर उसे अच्छी नज़र भेंट की जा सके, इस ध्येय से उसने भिनसोर नामक दुर्ग पर आक्रमण कर उसे जीत लिया। उदयपुर पहुँचकर उस दुर्ग को भेंट में देते हुए शक्तिसिंह ने प्रताप का अभिवादन किया। प्रताप ने प्रसन्न होकर वह दुर्ग शक्तिसिंह को पुरस्कार में दे दिया। यह दुर्ग लम्बे समय तक उसके वंशजों के अधिकार में बना रहा।[5] संवत 1632 (जुलाई, 1576 ई.) के सावन मास की सप्तमी का दिन मेवाड़ के इतिहास में सदा स्मरणीय रहेगा। उस दिन मेवाड़ के अच्छे रुधिर ने हल्दीघाटी को सींचा था। प्रताप के अत्यन्त निकटवर्ती पाँच सौ कुटुम्बी और सम्बन्धी, ग्वालियर का भूतपूर्व राजा रामशाह और साढ़े तीन सौ तोमर वीरों के साथ रामशाह का बेटा खाण्डेराव मारा गया। स्वामिभक्त झाला मन्नाजी अपने डेढ़ सौ सरदारों सहित मारा गया और मेवाड़ के प्रत्येक घर ने बलिदान किया


महाराणा की प्रतिज्ञा

प्रताप को अभूतपूर्व समर्थन मिला। यद्यपि धन और उज्ज्वल भविष्य ने उसके सरदारों को काफ़ी प्रलोभन दिया, परन्तु किसी ने भी उसका साथ नहीं छोड़ा। जयमल के पुत्रों ने उसके कार्य के लिये अपना रक्त बहाया। पत्ता के वंशधरों ने भी ऐसा ही किया और सलूम्बर के कुल वालों ने भी चूण्डा की स्वामिभक्ति को जीवित रखा। इनकी वीरता और स्वार्थ-त्याग का वृत्तान्त मेवाड़ के इतिहास में अत्यन्त गौरवमय समझा जाता है। उसने प्रतिज्ञा की थी कि वह 'माता के पवित्र दूध को कभी कलंकित नहीं करेगा।' इस प्रतिज्ञा का पालन उसने पूरी तरह से किया। कभी मैदानी प्रदेशों पर धावा मारकर जन-स्थानों को उजाड़ना तो कभी एक पर्वत से दूसरे पर्वत पर भागना और इस विपत्ति काल में अपने परिवार का पर्वतीय कन्दमूल-फल द्वारा भरण-पोषण करना और अपने पुत्र 'अमर' का जंगली जानवरों और जंगली लोगों के मध्य पालन करना, अत्यन्त कष्टप्राय कार्य था। इन सबके पीछे मूल मंत्र यही था कि बप्पा रावल का वंशज किसी शत्रु अथवा देशद्रोही के सम्मुख शीश झुकाये, यह असम्भव बात थी। क़ायरों के योग्य इस पापमय विचार से ही प्रताप का हृदय टुकड़े-टुकड़े हो जाता था। तातार वालों को अपनी बहन-बेटी समर्पण कर अनुग्रह प्राप्त करना, प्रताप को किसी भी दशा में स्वीकार्य न था। 'चित्तौड़ के उद्धार से पूर्व पात्र में भोजन, शैय्या पर शयन दोनों मेरे लिये वर्जित रहेंगे।' महाराणा की प्रतिज्ञा अक्षुण्ण रही और जब वे (विक्रम संवत 1653 माघ शुक्ल 11) तारीख़ 29 जनवरी सन 1597 ई. में परमधाम की यात्रा करने लगे, उनके परिजनों और सामन्तों ने वही प्रतिज्ञा करके उन्हें आश्वस्त किया। अरावली के कण-कण में महाराणा का जीवन-चरित्र अंकित है। शताब्दियों तक पतितों, पराधीनों और उत्पीड़ितों के लिये वह प्रकाश का काम देगा। चित्तौड़ की उस पवित्र भूमि में युगों तक मानव स्वराज्य एवं स्वधर्म का अमर सन्देश झंकृत होता रहेगा।

माई एहड़ा पूत जण, जेहड़ा राण प्रताप।
अकबर सूतो ओधकै, जाण सिराणै साप॥

कठोर जीवन निर्वाह

चित्तौड़ के विध्वंस और उसकी दीन दशा को देखकर भट्ट कवियों ने उसको आभूषण रहित विधवा स्त्री की उपमा दी है। प्रताप ने अपनी जन्मभूमि की इस दशा को देखकर सब प्रकार के भोग-विलास को त्याग दिया। भोजन-पान के समय काम में लिये जाने वाले सोने-चाँदी के बर्तनों को त्यागकर वृक्षों के पत्तों को काम में लिया जाने लगा। कोमल शय्या को छोड़ तृण शय्या का उपयोग किया जाने लगा। उसने अकेले ही इस कठिन मार्ग को अपनाया ही नहीं अपितु अपने वंश वालों के लिये भी इस कठोर नियम का पालन करने के लिये आज्ञा दी थी कि "जब तक चित्तौड़ का उद्धार न हो, तब तक सिसोदिया राजपूतों को सभी सुख त्याग देने चाहिए।" चित्तौड़ की मौजूदा दुर्दशा सभी लोगों के हृदय में अंकित हो जाय, इस दृष्टि से उसने यह आदेश भी दिया कि युद्ध के लिये प्रस्थान करते समय जो नगाड़े सेना के आगे-आगे बजाये जाते थे, वे अब सेना के पीछे बजाये जायें। इस आदेश का पालन आज तक किया जा रहा है और युद्ध के नगाड़े सेना के पिछले भाग के साथ ही चलते हैं।

राणा प्रताप और अकबर

अजमेर को अपना केन्द्र बनाकर अकबर ने प्रताप के विरुद्ध सैनिक अभियान शुरू कर दिया। मारवाड़ का मालदेव, जिसने शेरशाह का प्रबल विरोध किया था, मेड़ता और जोधपुर में असफल प्रतिरोध के बाद आमेर के भगवान दास के समान ही अकबर की शरण में चला गया।[6] उसने अपने पुत्र उदयसिंह को अकबर की सेवा में भेजा। अकबर ने अजमेर की तरफ़ जाते हुए नागौर में उससे मुलाक़ात की और इस अवसर पर मंडौर के राव को 'राजा' की उपाधि प्रदान की।[7]उसका उत्तराधिकारी उदयसिंह स्थूल शरीर का था, अतः आगे चलकर वह राजस्थान के इतिहास में मोटा राजा के नाम से विख्यात हुआ। इस समय से कन्नौज के वंशज मुग़ल बादशाह के 'दाहिने हाथ' पर स्थान पाने लगे। परन्तु अपनी कुल मर्यादा की बलि देकर मारवाड़ नरेश ने जिस सम्मान को प्राप्त किया था, वह सम्मान क्या मारवाड़ के राजा के सन्तान की ऊँचे सम्मान की बराबरी कर सकता है।
[सम्पादन] उदयसिंह द्वारा मुग़लों से विवाह सम्बन्ध

मोटा राजा उदयसिंह पहला व्यक्ति था, जिसने अपनी कुल की पहली कन्या का विवाह तातार से किया था।[8] इस सम्बन्ध के लिए जो घूस ली गई वह महत्त्वपूर्ण थी। उसे चार समृद्ध परगने प्राप्त हुए। इनकी सालाना आमदनी बीस लाख रुपये थी। इन परगनों के प्राप्त हो जाने से मारवाड़ राज्य की आय दुगुनी हो गई। आमेर और मारवाड़ जैसे उदाहरणों की मौजूदगी में और प्रलोभन का विरोध करने की शक्ति की कमी के कारण, राजस्थान के छोटे राजा लोग अपने असंख्य पराक्रमी सरदारों के साथ दिल्ली के सामंतों में परिवर्तित हो गए और इस परिवर्तन के कारण उनमें से बहुत से लोगों का महत्त्व भी बढ़ गया। मुग़ल इतिहासकारों ने सत्य ही लिखा है कि वे 'सिंहासन के स्तम्भ और अलंकार के स्वरूप थे।' परन्तु उपर्युक्त सभी बातें प्रताप के विरुद्ध भयजनक थीं। उसके देशवासियों के शस्त्र अब उसी के विरुद्ध उठ रहे थे। अपनी मान-मर्यादा बेचने वाले राजाओं से यह बात सही नहीं जा रही थी कि प्रताप गौरव के ऊँचे आसमान पर विराजमान रहे। इस बात का विचार करके ही उनके हृदय में डाह की प्रबल आग जलने लगी। प्रताप ने उन समस्त राजाओं (बूँदी के अलावा) से अपना सम्बन्ध छोड़ दिया, जो मुसलमानों से मिल गए थे।
[सम्पादन] वैवाहिक संबंधों पर रोक

सिसोदिया वंश के किसी शासक ने अपनी कन्या मुग़लों को नहीं दी। इतना ही नहीं, उन्होंने लम्बे समय तक उन राजवंशों को भी अपनी कन्याएँ नहीं दीं, जिन्होंने मुग़लों के साथ वैवाहिक सम्बन्ध क़ायम किये थे। इससे उन राजाओं को काफ़ी आघात पहुँचा। इसकी पुष्टि मारवाड़ और आमेर के राजाओं, बख़्त सिंह और जयसिंह के पुत्रों से होती है। दोनों ही शासकों ने मेवाड़ के सिसोदिया वंश के साथ वैवाहिक सम्बन्धों को पुनः स्थापित करने का अनुरोध किया था। लगभग एक शताब्दी के बाद उनका अनुरोध स्वीकार किया गया और वह भी इस शर्त के साथ कि मेवाड़ की राजकन्या के गर्भ से उत्पन्न होने वाला पुत्र ही सम्बन्धित राजा का उत्तराधिकारी होगा। सिसोदिया घराने ने अपने रक्त की पवित्रता को बनाये रखने के लिए जो क़दम उठाये गए, उनमें से एक का उल्लेख करना आवश्यक है, क्योंकि उस घटना ने आने वाली घटनाओं को काफ़ी प्रभावित किया है। आमेर का राजा मानसिंह अपने वंश का अत्यधिक प्रसिद्ध राजा था और उसके समय से ही उसके राज्य की उन्नति आरम्भ हुई थी। अकबर उसका फूफ़ा था। वैसे मानसिंह एक साहसी, चतुर और रणविशारद् सेनानायक था और अकबर की सफलताओं में आधा योगदान भी रहा था, परन्तु पारिवारिक सम्बन्ध तथा अकबर की विशेष कृपा से वह मुग़ल साम्राज्य का महत्त्वपूर्ण सेनापित बन गया था। कच्छवाह भट्टकवियों ने उसके शौर्य तथा उसकी उपलब्धियों का तेजस्विनी भाषा में उल्लेख किया है।
[सम्पादन] हल्दीघाटी युद्ध
Main.jpg मुख्य लेख : हल्दीघाटी का युद्ध

हल्दीघाटी का युद्ध अकबर और महाराणा प्रताप के बीच 18 जून, 1576 ई. को हुआ। इससे पूर्व अकबर ने 1541 ई. में मेवाड़ पर आक्रमण कर चित्तौड़ को घेर लिया था, किंतु राणा उदयसिंह ने उसकी अधीनता स्वीकार नहीं की थी। उदयसिंह प्राचीन आधाटपुर के पास उदयपुर नामक अपनी राजधानी बसाकर वहाँ चला गया। उनके बाद महाराणा प्रताप ने भी अकबर से युद्ध जारी रखा। उनका 'हल्दीघाटी का युद्ध' इतिहास प्रसिद्ध है। अकबर ने मेवाड़ को पूर्णरूप से जीतने के लिए अप्रैल, 1576 ई. में आमेर के राजा मानसिंह एवं आसफ ख़ाँ के नेतृत्व में मुग़ल सेना को आक्रमण के लिए भेजा। दोनों सेनाओं के मध्य गोगुडा के निकट अरावली पर्वत की 'हल्दीघाटी' शाखा के मध्य युद्ध हुआ। इस युद्ध में राणा प्रताप पराजित हुए। लड़ाई के दौरान अकबर ने कुम्भलमेर दुर्ग से भी महाराणा प्रताप को खदेड़ दिया तथा मेवाड़ पर अनेक आक्रमण करवाये। इस पर भी राणा प्रताप ने उसकी अधीनता स्वीकार नहीं की। बाद के कुछ वर्षों में जब अकबर का ध्यान दूसरे कामों में लगा गया, तब प्रताप ने अपने स्थानों पर फिर अधिकार कर लिया था। सन् 1597 में चावंड में उनकी मृत्यु हो गई थी।
[सम्पादन] राणा प्रताप की मानसिंह से भेंट
चित्तौड़गढ़ का क़िला
Fort Of Chittorgarh

शोलापुर की विजय के बाद मानसिंह वापस हिन्दुस्तान लौट रहा था तो उसने राणा प्रताप से, जो इन दिनों कमलमीर में था, मिलने की इच्छा प्रकट की। प्रताप उसका स्वागत करने के लिए उदयसागर तक आया। इस झील के सामने वाले टीले पर आमेर के राजा के लिए दावत की व्यवस्था की गई थी। भोजन तैयार हो जाने पर मानसिंह को बुलावा भेजा गया। राजकुमार अमरसिंह को अतिथि की सेवा के लिए नियुक्त किया गया था। राणा प्रताप अनुपस्थित थे। मानसिंह के पूछने पर अमरसिंह ने बताया कि राणा को सिरदर्द है, वे नहीं आ पायेंगे। आप भोजन करके विश्राम करें। मानसिंह ने गर्व के साथ सम्मानित स्वर में कहा कि "राणा जी से कहो कि उनके सिर दर्द का यथार्थ कारण समझ गया हूँ। जो कुछ होना था, वह तो हो गया और उसको सुधारने का कोई उपाय नहीं है, फिर भी यदि वे मुझे खाना नहीं परोसेंगे तो और कौन परोसेगा।" मानसिंह ने राणा के बिना भोजन स्वीकार नहीं किया। तब प्रताप ने उसे कहला भेजा कि "जिस राजपूत ने अपनी बहन तुर्क को दी हो, उसके साथ कौन राजपूत भोजन करेगा।"

राजा मानसिंह ने इस अपमान को आहूत करने में बुद्धिमता नहीं दिखाई थी। यदि प्रताप की तरफ़ से उसे निमंत्रित किया गया होता, तब तो उसका विचार उचित माना जा सकता था, परन्तु इसके लिए प्रताप को दोषी नहीं ठहराया जा सकता। मानसिंह ने भोजन को छुआ तक नहीं, केवल चावल के कुछ कणों को जो अन्न देवता को अर्पण किए थे, उन्हें अपनी पगड़ी में रखकर वहाँ से चला गया। जाते समय उसने कहा, "आपकी ही मान-मर्यादा बचाने के लिए हमने अपनी मर्यादा को खोकर मुग़लों को अपनी बहिन-बेटियाँ दीं। इस पर भी जब आप में और हम में विषमता रही, तो आपकी स्थिति में भी कमी आयेगी। यदि आपकी इच्छा सदा ही विपत्ति में रहने की है, तो यह अभिप्राय शीघ्र ही पूरा होगा। यह देश हृदय से आपको धारण नहीं करेगा।" अपने घोड़े पर सवार होकर मानसिंह ने राणा प्रताप, जो इस समय आ पहुँचे थे, को कठोर दृष्टि से निहारते हुए कहा, "यदि मैं तुम्हारा यह मान चूर्ण न कर दूँ तो मेरा नाम मानसिंह नहीं।"

प्रताप ने उत्तर दिया कि "आपसे मिलकर मुझे खुशी होगी।" वहाँ पर उपस्थित किसी व्यक्ति ने अभद्र भाषा में कह दिया कि "अपने साथ फूफ़ा को लाना मत भूलना।" जिस स्थान पर मानसिंह के लिए भोजन सजाया गया था, उसे अपवित्र हुआ मानकर खोद दिया गया और फिर वहाँ गंगा का जल छिड़का गया और जिन सरदारों एवं राजपूतों ने अपमान का यह दृश्य देखा था, उन सभी ने अपने को मानसिंह का दर्शन करने से पतित समझकर स्नान किया तथा वस्त्रादि बदले।[9]मुग़ल सम्राट को सम्पूर्ण वृत्तान्त की सूचना दी गई। उसने मानसिंह के अपमान को अपना अपमान समझा। अकबर ने समझा था कि राजपूत अपने पुराने संस्कारों को छोड़ बैठे होंगे, परन्तु यह उसकी भूल थी। इस अपमान का बदला लेने के लिए युद्ध की तैयारी की गई और इन युद्धों ने प्रताप का नाम अमर कर दिया। पहला युद्ध हल्दीघाटी के नाम से प्रसिद्ध है। जब तक मेवाड़ पर किसी सिसोदिया का अधिकार रहेगा अथवा कोई भट्टकवि जीवित रहेगा, तब तक हल्दीघाटी का नाम कोई भुला नहीं सकेगा।
मान सिंह पर हमला करते हुए महाराणा प्रताप और चेतक
[सम्पादन] कमलमीर का युद्ध

विजय से प्रसन्न सलीम पहाड़ियों से लौट गया, क्योंकि वर्षा ऋतु के आगमन से आगे बढ़ना सम्भव न था। इससे प्रताप को कुछ राहत मिली। परन्तु कुछ समय बाद शत्रु पुनः चढ़ आया और प्रताप को एक बार पुनः पराजित होना पड़ा। तब प्रताप ने कमलमीर को अपना केन्द्र बनाया। मुग़ल सेनानायकों कोका और शाहबाज ख़ाँ ने इस स्थान को भी घेर लिया। प्रताप ने जमकर मुक़ाबला किया और तब तक इस स्थान को नहीं छोड़ा, जब तक पानी के विशाल स्रोत नोगन के कुँए का पानी विषाक्त नहीं कर दिया गया। ऐसे घृणित विश्वासघात का श्रेय आबू के देवड़ा सरदार को जाता है, जो इस समय अकबर के साथ मिला हुआ था। कमलमीर से प्रताप चावंड चला गया और सोनगरे सरदार भान ने अपनी मृत्यु तक कमलमीर की रक्षा की। कमलमीर के पतन के बाद राजा मानसिंह ने धरमेती और गोगुन्दा के दुर्गों पर भी अधिकार कर लिया। इसी अवधि में मोहब्बत ख़ाँ ने उदयपुर पर अधिकार कर लिया और अमीशाह नामक एक मुग़ल शाहज़ादा ने चावंड और अगुणा पानोर के मध्यवर्ती क्षेत्र में पड़ाव डाल कर यहाँ के भीलों से प्रताप को मिलने वाली सहायता रोक दी। फ़रीद ख़ाँ नामक एक अन्य मुग़ल सेनापति ने छप्पन पर आक्रमण किया और दक्षिण की तरफ़ से चावंड को घेर लिया। इस प्रकार प्रताप चारों तरफ़ से शत्रुओं से घिर गया और बचने की कोई उम्मीद न थी। वह रोज़ाना एक स्थान से दूसरे स्थान, एक पहाड़ी से दूसरी पहाड़ी के गुप्त स्थानों में छिपता रहता और अवसर मिलने पर शत्रु पर आक्रमण करने से भी न चूकता। फ़रीद ने प्रताप को पकड़ने के लिए चारों तरफ़ अपने सैनिकों का जाल बिछा दिया, परन्तु प्रताप की छापामार पद्धति ने असंख्य मुग़ल सैनिकों को मौत के घाट पहुँचा दिया। वर्षा ऋतु ने पहाड़ी नदियों और नालों को पानी से भर दिया, जिसकी वजह से आने जाने के मार्ग अवरुद्ध हो गए। परिणामस्वरूप मुग़लों के आक्रमण स्थगित हो गए।
[सम्पादन] परिवार की सुरक्षा

इस प्रकार समय गुज़रता गया और प्रताप की कठिनाइयाँ भयंकर बनती गईं। पर्वत के जितने भी स्थान प्रताप और उसके परिवार को आश्रय प्रदान कर सकते थे, उन सभी पर बादशाह का आधिकार हो गया। राणा को अपनी चिन्ता न थी, चिन्ता थी तो बस अपने परिवार की ओर से छोटे-छोटे बच्चों की। वह किसी भी दिन शत्रु के हाथ में पड़ सकते थे। एक दिन तो उसका परिवार शत्रुओं के पँन्जे में पहुँच गया था, परन्तु कावा के स्वामीभक्त भीलों ने उसे बचा लिया। भील लोग राणा के बच्चों को टोकरों में छिपाकर जावरा की खानों में ले गये और कई दिनों तक वहीं पर उनका पालन-पोषण किया। भील लोग स्वयं भूखे रहकर भी राणा और परिवार के लिए खाने की सामग्री जुटाते रहते थे। जावरा और चावंड के घने जंगल के वृक्षों पर लोहे के बड़े-बड़े कीले अब तक गड़े हुए मिलते हैं। इन कीलों में बेतों के बड़े-बड़े टोकरे टाँग कर उनमें राणा के बच्चों को छिपाकर वे भील राणा की सहायता करते थे। इससे बच्चे पहाड़ों के जंगली जानवरों से भी सुरक्षित रहते थे। इस प्रकार की विषम परिस्थिति में भी प्रताप का विश्वास नहीं डिगा।
[सम्पादन] अकबर द्वारा प्रशंसा

अकबर ने भी इन समाचारों को सुना और पता लगाने के लिए अपना एक गुप्तचर भेजा। वह किसी तरक़ीब से उस स्थान पर पहुँच गया, जहाँ राणा और उसके सरदार एक घने जंगल के मध्य एक वृक्ष के नीचे घास पर बैठे भोजन कर रहे थे। खाने में जंगली फल, पत्तियाँ और जड़ें थीं। परन्तु सभी लोग उस खाने को उसी उत्साह के साथ खा रहे थे, जिस प्रकार कोई राजभवन में बने भोजन को प्रसन्नता और उमंग के साथ खाता हो। गुप्तचर ने किसी चेहरे पर उदासी और चिन्ता नहीं देखी। उसने वापस आकर अकबर को पूरा वृत्तान्त सुनाया। सुनकर अकबर का हृदय भी पसीज गया और प्रताप के प्रति उसमें मानवीय भावना जागृत हुई। उसने अपने दरबार के अनेक सरदारों से प्रताप के तप, त्याग और बलिदान की प्रशंसा की। अकबर के विश्वासपात्र सरदार अब्दुर्रहीम ख़ानख़ाना ने भी अकबर के मुख से प्रताप की प्रशंसा सुनी थी। उसने अपनी भाषा में लिखा, "इस संसार में सभी नाशवान हैं। राज्य और धन किसी भी समय नष्ट हो सकता है, परन्तु महान व्यक्तियों की ख्याति कभी नष्ट नहीं हो सकती। पुत्तों ने धन और भूमि को छोड़ दिया, परन्तु उसने कभी अपना सिर नहीं झुकाया। हिन्द के राजाओं में वही एकमात्र ऐसा राजा है, जिसने अपनी जाति के गौरव को बनाए रखा है।"

परन्तु कभी-कभी ऐसे अवसर आ उपस्थित होते, जब अपने प्राणों से भी प्यारे लोगों को भयानक आवाज़ से ग्रस्त देखकर वह भयभीत हो उठता। उसकी पत्नी किसी पहाड़ी या गुफ़ा में भी असुरक्षित थी और उसके उत्तराधिकारी, जिन्हें हर प्रकार की सुविधाओं का अधिकार था, भूख से बिलखते उसके पास आकर रोने लगते। मुग़ल सैनिक इस प्रकार उसके पीछे पड़ गए थे कि भोजन तैयार होने पर कभी-कभी खाने का अवसर न मिलता था और सुरक्षा के लिए भोजन छोड़कर भागना पड़ता था। एक दिन तो पाँच बार भोजन पकाया गया और हर बार भोजन को छोड़कर भागना पड़ा। एक अवसर पर प्रताप की पत्नी और उसकी पुत्र-वधु ने घास के बीजों को पीसकर कुछ रोटियाँ बनाई। उनमें से आधी रोटियाँ बच्चों को दे दी गई और बची हुई आधी रोटियाँ दूसरे दिन के लिए रख दी गईं। इसी समय प्रताप को अपनी लड़की की चिल्लाहट सुनाई दी। एक जंगली बिल्ली लड़की के हाथ से उसके हिस्से की रोटी को छीनकर भाग गई और भूख से व्याकुल लड़की के आँसू टपक आये।[10] जीवन की इस दुरावस्था को देखकर राणा का हृदय एक बार विचलित हो उठा। अधीर होकर उसने ऐसे राज्याधिकार को धिक्कारा, जिसकी वज़ह से जीवन में ऐसे करुण दृश्य देखने पड़े और उसी अवस्था में अपनी कठिनाइयों को दूर करने के लिए उसने एक पत्र के द्वारा अकबर से मिलने की माँग की।
[सम्पादन] पृथ्वीराज द्वारा प्रताप का स्वाभिमान जाग्रत करना

प्रताप के पत्र को पाकर अकबर की प्रसन्नता की सीमा न रही। उसने इसका अर्थ प्रताप का आत्मसमर्पण समझा और उसने कई प्रकार के सार्वजनिक उत्सव किए। अकबर ने उस पत्र को पृथ्वीराज नामक एक श्रेष्ठ एवं स्वाभीमानी राजपूत को दिखलाया। पृथ्वीराज बीकानेर के नरेश का छोटा भाई था। बीकानेर नरेश ने मुग़ल सत्ता के सामने शीश झुका दिया था। पृथ्वीराज केवल वीर ही नहीं अपितु एक योग्य कवि भी था। वह अपनी कविता से मनुष्य के हृदय को उन्मादित कर देता था। वह सदा से प्रताप की आराधना करता आया था। प्रताप के पत्र को पढ़कर उसका मस्तक चकराने लगा। उसके हृदय में भीषण पीड़ा की अनुभूति हुई। फिर भी अपने मनोभावों पर अंकुश रखते हुए उसने अकबर से कहा कि "यह पत्र प्रताप का नहीं है। किसी शत्रु ने प्रताप के यश के साथ यह जालसाज़ की है। आपको भी धोखा दिया है। आपके ताज़ के बदले में भी वह आपकी आधीनता स्वीकार नहीं करेगा।" सच्चाई को जानने के लिए उसने अकबर से अनुरोध किया कि वह उसका पत्र प्रताप तक पहुँचा दे। अकबर ने उसकी बात मान ली और पृथ्वीराज ने राजस्थानी शैली में प्रताप को एक पत्र लिख भेजा। अकबर ने सोचा कि इस पत्र से असलियत का पता चल जायेगा और पत्र था भी ऐसा ही। परन्तु पृथ्वीराज ने उस पत्र के द्वारा प्रताप को उस स्वाभीमान का स्मरण कराया, जिसकी खातिर उसने अब तक इतनी विपत्तियों को सहन किया था और अपूर्व त्याग व बलिदान के द्वारा अपना मस्तक ऊँचा रखा था। पत्र में इस बात का भी उल्लेख था कि हमारे घरों की स्त्रियों की मर्यादा छिन्न-भिन्न हो गई है और बाज़ार में वह मर्यादा बेची जा रही है। उसका ख़रीददार केवल अकबर है। उसने सिसोदिया वंश के एक स्वाभिमानी पुत्र को छोड़कर सबको ख़रीद लिया है, परन्तु प्रताप को नहीं ख़रीद पाया है। वह ऐसा राजपूत नहीं, जो नौरोजा के लिए अपनी मर्यादा का परित्याग कर सकता है। क्या अब चित्तौड़ का स्वाभिमान भी इस बाज़ार में बिक़ेगा।[11]
[सम्पादन] खुशरोज़ त्योहार

राठौर पृथ्वीराज के ओजस्वी पत्र ने प्रताप के मन की निराशा को दूर कर दिया और उसे लगा जैसे दस हज़ार राजपूतों की शक्ति उसके शरीर में समा गई हो। उसने अपने स्वाभिमान को क़ायम रखने का दृढ़संकल्प कर लिया। पृथ्वीराज के पत्र में "नौरोजा के लिए मर्यादा का सौदा" करने की बात कही गई। इसका स्पष्टीकरण देना आवश्यक है। 'नौरोजा' का अर्थ "वर्ष का नया दिन" होता है और पूर्व के मुसलमानों का यह धार्मिक त्योहार है। अकबर ने स्वयं इसकी प्रतिष्ठा की और इसका नाम रखा "खुशरोज़" अर्थात् 'खुशी का दिन' और इसकी शुरुआत अकबर ने ही की थी। इस अवसर पर सभी लोग उत्सव मनाते और राजदरबार में भी कई प्रकार के आयोजन किए जाते थे। इस प्रकार के आयोजनों में एक प्रमुख आयोजन स्त्रियों का मेला था। एक बड़े स्थान पर मेले का आयोजन किया जाता था, जिसमें केवल स्त्रियाँ ही भाग लेती थीं। वे ही दुकानें लगाती थीं और वे ही ख़रीददारी करती थीं। पुरुषों का प्रवेश निषिद्ध था। राजपूत स्त्रियाँ भी दुकानें लगाती थीं। अकबर छद्म वेष में बाज़ार में जाता था और कहा जाता है कि कई सुन्दर बालाएँ उसकी कामवासना का शिकार हो अपनी मर्यादा लुटा बैठतीं। एक बार राठौर पृथ्वीराज की स्त्री भी इस मेले में शामिल हुई थी और उसने बड़े साहस तथा शौर्य के साथ अपने सतीत्व की रक्षा की थी। वह शाक्तावत वंश की लड़की थी। उस मेले में घूमते हुए अकबर की नज़र उस पर पड़ी और उसकी सुन्दरता से प्रभावित होकर अकबर की नियत बिगड़ गई और उसने किसी उपाय से उसे मेले से अलग कर दिया। पृथ्वीराज की स्त्री ने जब क़ामुक अकबर को अपने सम्मुख पाया तो उसने अपने वस्त्रों में छिपी कटार को निकालकर कहा, "ख़बरदार, अगर इस प्रकार की तूने हिम्मत की। सौगन्ध खा कि आज से कभी किसी स्त्री के साथ में ऐसा व्यवहार न करेगा।" अकबर के क्षमा माँगने के बाद पृथ्वीराज की स्त्री मेले से चली गई। अबुल फ़ज़ल ने इस मेले के बारे में अलग बात लिखी है। उनके अनुसार बादशाह अकबर वेष बदलकर मेले में इसलिए जाता था कि उसे वस्तुओं के भाव-ताव मालूम हो सकें।
[सम्पादन] भामाशाह द्वारा प्रताप की शक्तियाँ जाग्रत होना
Main.jpg मुख्य लेख : भामाशाह

पृथ्वीराज का पत्र पढ़ने के बाद राणा प्रताप ने अपने स्वाभिमान की रक्षा करने का निर्णय कर लिया। परन्तु मौजूदा परिस्थितियों में पर्वतीय स्थानों में रहते हुए मुग़लों का प्रतिरोध करना सम्भव न था। अतः उसने रक्तरंजित चित्तौड़ और मेवाड़ को छोड़कर किसी दूरवर्ती स्थान पर जाने का विचार किया। उसने तैयारियाँ शुरू कीं। सभी सरदार भी उसके साथ चलने को तैयार हो गए। चित्तौड़ के उद्धार की आशा अब उनके हृदय से जाती रही थी। अतः प्रताप ने सिंध नदी के किनारे पर स्थित सोगदी राज्य की तरफ़ बढ़ने की योजना बनाई ताकि बीच का मरुस्थल उसके शत्रु को उससे दूर रखे। अरावली को पार कर जब प्रताप मरुस्थल के किनारे पहुँचा ही था कि एक आश्चर्यजनक घटना ने उसे पुनः वापस लौटने के लिए विवश कर दिया। मेवाड़ के वृद्ध मंत्री भामाशाह ने अपने जीवन में काफ़ी सम्पत्ति अर्जित की थी। वह अपनी सम्पूर्ण सम्पत्ति के साथ प्रताप की सेवा में आ उपस्थित हुआ और उससे मेवाड़ के उद्धार की याचना की। यह सम्पत्ति इतनी अधिक थी कि उससे वर्षों तक 25,000 सैनिकों का खर्चा पूरा किया जा सकता था।[12] भामाशाह का नाम मेवाड़ के उद्धारकर्ताओं के रूप में आज भी सुरक्षित है। भामाशाह के इस अपूर्व त्याग से प्रताप की शक्तियाँ फिर से जागृत हो उठीं।
[सम्पादन] दुर्गों पर अधिकार
युद्धभूमि पर महाराणा प्रताप के चेतक (घोड़े) की मौत

महाराणा प्रताप ने वापस आकर राजपूतों की एक अच्छी सेना बना ली, जबकि उसके शत्रुओं को इसकी भनक भी नहीं मिल पाई। ऐसे में प्रताप ने मुग़ल सेनापति शाहबाज़ ख़ाँ को देवीर नामक स्थान पर अचानक आ घेरा। मुग़लों ने जमकर सामना किया, परन्तु वे परास्त हुए। बहुत से मुग़ल मारे गए और बाक़ी पास की छावनी की ओर भागे। राजपूतों ने आमेर तक उनका पीछा किया और उस मुग़ल छावनी के अधिकांश सैनिकों को भी मौत के घाट उतार दिया गया। इसी समय कमलमीर पर आक्रमण किया गया और वहाँ का सेनानायक अब्दुल्ला मारा गया और दुर्ग पर प्रताप का अधिकार हो गया। थोड़े ही दिनों में एक के बाद एक करके बत्तीस दुर्गों पर अधिकार कर लिया गया और दुर्गों में नियुक्त मुग़ल सैनिकों को मौत के घाट उतार दिया गया। संवत 1586 (1530 ई.) में चित्तौड़, अजमेर और मांडलगढ़ को छोड़कर सम्पूर्ण मेवाड़ पर प्रताप ने अपना पुनः अधिकार जमा लिया।[13] राजा मानसिंह को उसके देशद्रोह का बदला देने के लिए प्रताप ने आमेर राज्य के समृद्ध नगर मालपुरा को लूटकर नष्ट कर दिया। उसके बाद प्रताप उदयपुर की तरफ़ बढ़ा। मुग़ल सेना बिना युद्ध लड़े ही वहाँ से चली गई और उदयपुर पर प्रताप का अधिकार हो गया। अकबर ने थोड़े समय के लिए युद्ध बन्द कर दिया।

सम्पूर्ण जीवन युद्ध करके और भयानक कठिनाइयों का सामना करके प्रताप ने जिस तरह से अपना जीवन व्यतीत किया, उसकी प्रशंसा इस संसार से मिट न सकेगी। परन्तु इन सबके परिणामस्वरूप प्रताप में समय से पहले ही बुढ़ापा आ गया। उसने जो प्रतिज्ञा की थी, उसे अन्त तक निभाया। राजमहलों को छोड़कर प्रताप ने पिछोला तालाब के निकट अपने लिए कुछ झोपड़ियाँ बनवाई थीं ताकि वर्षा में आश्रय लिया जा सके। इन्हीं झोपड़ियों में प्रताप ने सपरिवार सहित अपना जीवन व्यतीत किया। अब जीवन का अन्तिम समय आ पहुँचा था। प्रताप ने चित्तौड़ के उद्धार की प्रतिज्ञा की थी, परन्तु उसमें सफलता न मिली। फिर भी, उसने अपनी थोड़ी सी सेना की सहायता से मुग़लों की विशाल सेना को इतना अधिक परेशान किया कि अन्त में अकबर को युद्ध बन्द कर देना पड़ा।
[सम्पादन] वीरता के परिचायक

महाराणा प्रताप ने एक प्रतिष्ठित कुल के मान-सम्मान और उसकी उपाधि को प्राप्त किया। परन्तु उसके पास न तो राजधानी थी और न ही वित्तीय साधन। बार-बार की पराजयों ने उसके स्व-बन्धुओं और जाति के लोगों को निरुत्साहित कर दिया था। फिर भी उसके पास अपना जातीय स्वाभिमान था। उसने सत्तारूढ़ होते ही चित्तौड़ के उद्धार, कुल के सम्मान की पुनर्स्थापना तथा उसकी शक्ति को प्रतिष्ठित करने की तरफ़ अपना ध्यान केन्द्रित किया। इस ध्येय से प्रेरित होकर वह अपने प्रबल शत्रु के विरुद्ध जुट सका। उसने इस बात की चिन्ता नहीं की कि परिस्थितियाँ उसके कितने प्रतिकूल हैं। उसका चतुर विरोधी एक सुनिश्चित नीति के द्वारा उसके ध्येय का परास्त करने में लगा हुआ था। मुग़ल प्रताप के धर्म और रक्त बंधुओं को ही उसके विरोध में खड़ा करने में जुटा था। मारवाड़, आमेर, बीकानेर और बूँदी के राजा लोग अकबर की सार्वभौम सत्ता के सामने मस्तक झुका चुके थे। इतना ही नहीं, प्रताप का सगा भाई 'सागर'[14] भी उसका साथ छोड़कर शत्रु पक्ष से जा मिला और अपने इस विश्वासघात की क़ीमत उसे अपने कुल की राजधानी और उपाधि के रूप में प्राप्त हुई।
[सम्पादन] कुशल प्रशासक
महाराणा प्रताप का डाक टिकट
Maharana Pratap Stamp

महाराणा प्रताप प्रजा के हृदय पर शासन करने वाले थे। एक आज्ञा हुई और विजयी सेना ने देखा उसकी विजय व्यर्थ है। चित्तौड़ भस्म हो गया, खेत उजड़ गये, कुएँ भर दिये गये और ग्राम के लोग जंगल एवं पर्वतों में अपने समस्त पशु एवं सामग्री के साथ अदृश्य हो गये। शत्रु के लिये इतना विकट उत्तर, यह उस समय महाराणा की अपनी सूझ है। अकबर के उद्योग में राष्ट्रीयता का स्वप्न देखने वालों को इतिहासकार बदायूँनी आसफ ख़ाँ के ये शब्द स्मरण कर लेने चाहिये- "किसी की ओर से सैनिक क्यों न मरे, थे वे हिन्दू ही और प्रत्येक स्थिति में विजय इस्लाम की ही थी।" यह कूटनीति थी अकबर की और महाराणा इसके समक्ष अपना राष्ट्रगौरव लेकर अडिग भाव से उठे थे।
[सम्पादन] मृत्यु

अकबर के युद्ध बन्द कर देने से प्रताप को महा दुःख हुआ। कठोर उद्यम और परिश्रम सहन कर उसने हज़ारों कष्ट उठाये थे, परन्तु शत्रुओं से चित्तौड़ का उद्धार न कर सके। वह एकाग्रचित्त से चित्तौड़ के उस ऊँचे परकोटे और जयस्तम्भों को निहारा करते थे और अनेक विचार उठकर हृदय को डाँवाडोल कर देते थे। ऐसे में ही एक दिन प्रताप एक साधारण कुटी में लेटे हुए काल की कठोर आज्ञा की प्रतीज्ञा कर रहे थे। उनके चारों तरफ़ उनके विश्वासी सरदार बैठे हुए थे। तभी प्रताप ने एक लम्बी साँस ली। सलूम्बर के सामंन्त ने कातर होकर पूछा, "महाराज! ऐसे कौन से दारुण दुःख ने आपको दुःखित कर रखा है और अन्तिम समय में आपकी शान्ति को भंग कर रहा है।" प्रताप का उत्तर था "सरदार जी! अभी तक प्राण अटके हुए हैं, केवल एक ही आश्वासन की वाणी सुनकर यह अभी सुखपूर्वक देह को छोड़ जायेगा। यह वाणी आप ही के पास है।"

"आप सब लोग मेरे सम्मुख प्रतिज्ञा करें कि जीवित रहते अपनी मातृभूमि किसी भी भाँति तुर्कों के हाथों में नहीं सौंपेंगे। पुत्र राणा अमर सिंह हमारे पूर्वजों के गौरव की रक्षा नहीं कर सकेगा। वह मुग़लों के ग्रास से मातृभूमि को नहीं बचा सकेगा। वह विलासी है, वह कष्ट नहीं झेल सकेगा।" इसके बाद राणा ने अमरसिंह को बातें सुनाते हुए कहा, "एक दिन उस नीचि कुटिया में प्रवेश करते समय अमरसिंह अपने सिर से पगड़ी उतारना भूल गया था। द्वार के एक बाँस से टकराकर उसकी पगड़ी नीचे गिर गई। दूसरे दिन उसने मुझसे कहा कि यहाँ पर बड़े-बड़े महल बनवा दीजिए।" कुछ क्षण चुप रहकर प्रताप ने कहा, "इन कुटियों के स्थान पर बड़े-बड़े रमणीक महल बनेंगे, मेवाड़ की दुरवस्था भूलकर अमरसिंह यहाँ पर अनेक प्रकार के भोग-विलास करेगा। अमर के विलासी होने पर मातृभूमि की वह स्वाधीनता जाती रहेगी, जिसके लिए मैंने बराबर पच्चीस वर्ष तक कष्ट उठाए, सभी भाँति की सुख-सुविधाओं को छोड़ा। वह इस गौरव की रक्षा न कर सकेगा और तुम लोग-तुम सब उसके अनर्थकारी उदाहरण का अनुसरण करके मेवाड़ के पवित्र यश में कलंक लगा लोगे।" प्रताप का वाक्य पूरा होते ही समस्त सरदारों ने उससे कहा, "महाराज! हम लोग बप्पा रावल के पवित्र सिंहासन की शपथ करते हैं कि जब तक हम में से एक भी जीवित रहेगा, उस दिन तक कोई तुर्क मेवाड़ भूमि पर अधिकार न कर सकेगा। जब तक मेवाड़ भूमि की पूर्व-स्वाधीनता का पूरी तरह उद्धार हो नहीं पायेगा, तब तक हम लोग इन्हीं कुटियों में निवास करेंगे।" इस संतोषजनक वाणी को सुनते ही प्रताप के प्राण निकल गए।[15]

इस प्रकार एक ऐसे राजपूत के जीवन का अवसान हो गया, जिसकी स्मृति आज भी प्रत्येक सिसोदिया को प्रेरित कर रही है। इस संसार में जितने दिनों तक वीरता का आदर रहेगा, उतने ही दिन तक प्रताप की वीरता, माहात्म्य और गौरव संसार के नेत्रों के सामने अचल भाव से विराजमान रहेगा। उतने दिन तक वह 'हल्दीघाट मेवाड़ की थर्मोपोली' और उसके अंतर्गत देवीर क्षेत्र 'मेवाड़ का मैराथन' नाम से पुकारा जाया करेगा।



पंडित नरेन्द्र मिश्र की कविता इस प्रकार है-
राणा प्रताप इस भरत भूमि के, मुक्ति मंत्र का गायक है।
राणा प्रताप आज़ादी का, अपराजित काल विधायक है।।
वह अजर अमरता का गौरव, वह मानवता का विजय तूर्य।
आदर्शों के दुर्गम पथ को, आलोकित करता हुआ सूर्य।।
राणा प्रताप की खुद्दारी, भारत माता की पूंजी है।
ये वो धरती है जहां कभी, चेतक की टापें गूंजी है।।
पत्थर-पत्थर में जागा था, विक्रमी तेज़ बलिदानी का।
जय एकलिंग का ज्वार जगा, जागा था खड्ग भवानी का।।
लासानी वतन परस्ती का, वह वीर धधकता शोला था।
हल्दीघाटी का महासमर, मज़हब से बढकर बोला था।।
राणा प्रताप की कर्मशक्ति, गंगा का पावन नीर हुई।
राणा प्रताप की देशभक्ति, पत्थर की अमिट लकीर हुई।
समराँगण में अरियों तक से, इस योद्धा ने छल नहीं किया।
सम्मान बेचकर जीवन का, कोई सपना हल नहीं किया।।
मिट्टी पर मिटने वालों ने, अब तक जिसका अनुगमन किया।
राणा प्रताप के भाले को, हिमगिरि ने झुककर नमन किया।।
प्रण की गरिमा का सूत्रधार, आसिन्धु धरा सत्कार हुआ।
राणा प्रताप का भारत की, धरती पर जयजयकार हुआ।।






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